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________________ यापनीय साहित्य : १२७ ३९१ नं० पर है ) कविवर वृन्दावनदासजी को शंका हुई थी और उसका समाधान करने के लिए दीवान अमरचन्द जी को पत्र लिखा था । दीवान जी ने उत्तर दिया था कि “इसमें वैयावृत्ति करने वाला मुनि आहार आदि से मनि का उपकार करे; परन्तु यह स्पष्ट नहीं किया है कि आहार स्वयं हाथ से बनाकर दे। मुनि की ऐसी चर्या आचारांग में नहीं बतलाई है।" ८. गाथा ११२३ नं० को 'देसामिसिय सुत्तं' में 'तालपलंबसुतम्मि' पद में जिस सूत्र का उल्लेख किया है वह कल्पसूत्र ( बृहत्कल्प ) का है जिसका प्रारम्भ है 'तालपलंबं ण कप्पदि'। इसकी विजयोदया टीका में, 'तथा चोक्तं' कहकर कल्प की दो गाथायें और दी हैं और वे ही आशाधर ने 'कल्पे' कहकर उद्धृत की हैं। ९. गाथा ७९-८३ में मुनि के उत्सगं और अपवाद मार्ग का विधान है जिसके अनुसार मुनि वस्त्र धारण कर सकता है-"वसनसहितलिंगधारिणो हि वस्त्रखंडादिकं शोधनीयं महत् । इतरस्य पिच्छादिमात्रं ।" १०. गाथा ७९-८०-८१ में शिवायं ने भक्त प्रत्याख्यान के प्रसंग में कहा है कि उत्सर्गलिंग वाले ( वस्त्रहीन ) को तो जो कि भक्त प्रत्याख्यान करना चाहता है उत्सलिंग ही चाहिए परन्तु जो अपवादलिंगी ( सवस्त्र ) है, उसे भी उत्सर्गलिंग ही प्रशस्त कहा है, अर्थात् उसे भी नग्न हो जाना चाहिए और जिसके लिंगसम्बन्धी तीन दोष दुनिवार हों उसे वसति में संस्तरारूढ होने पर उत्सर्गलिंग धारण करना चाहिए। बहत्कल्पसूत्र, आवश्यकनियुक्ति, भगवती आराधना की अनेक गाथायें एक सी हैं। साधु के मृतक संस्कार की गाथायें खास तौर से उल्लेखनीय हैं। ११. आराधना का चालीसवाँ 'विजहना' नाम का अधिकार भी विलक्षण और अभूतपूर्व है, जिसमें मुनि के मृत शरीर को रात्रि-भर जागरण करके रखने की और दूसरे दिन किसी अच्छे स्थान में वैसे ही ( बिना जलाये ) छोड़ आने की विधि वर्णित है । यह पारसी लोगों जैसी विधि अन्य किसी दिगम्बर ग्रन्थ में अभी तक देखने में नहीं आई। १२. नम्बर १५४४ की गाथा में कहा है कि घोर अवमोदर्य या अल्प १. देखो, 'आराधना और उसकी टीकायें। २. भगवती बाराधनावचनिकाकी भूमिका, पृ० १२-१३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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