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________________ यापनीय साहित्य : ११५ कहा गया है। इसके विपरीत दक्षिण भारतीय दिगम्बर परम्परा में 'यति' विरुद प्रचलित रहा हो, ऐसी हमें जानकारी नहीं है, किन्तु यापनीय परम्परा से निकले कष्ठासंघ के भट्टारक 'यति' कहे जाते रहे हैं, उदाहरणार्थ सोनागिर के भट्टारकों की गद्दी आज भी यतिजो की गद्दी कही जाती है। यतिवृषभ के चूर्णिसूत्रों में न तो स्त्रीमुक्ति का निषेध है और न केवलिमुक्ति का । अतः उन्हें यापनीय परम्परा से सम्बद्ध मानने में कोई बाधा नहीं आती। यतिवृषभ को यापनीय मानने के लिए एक आधार यह भी है कि अपराजित ने भगवती आराधना की गाथा २०६९ (शोलापुर संस्करण) की टीका में यतिवृषभ द्वारा श्रावस्ती में शस्त्र ग्रहण करके देह त्याग करने का उल्लेख किया है। यह कथा हरिषेण के बहद-कथा कोष में क्रमांक १५६ पर और नेमिदत्त के आराधना कोष में क्रम ८१ पर विस्तार से वर्णित है । यद्यपि भगवती आराधना की मूल गाथा में मात्र 'गणि' शब्द का उल्लेख है किन्तु टीकाकार अपराजित तथा बृहदकथाकोष के कर्ता हरिषेण ने उन्हें यतिवृषभ कहा है। सम्भवतः टीकाकार और बृहद्कथाकोषकार के सम्मुख कोई अनुश्रुति रही होगी। यह स्पष्ट है कि भगवती आराधना के कर्ता शिवार्य, टीकाकार अपराजित यापनीय और बृहतकथाकोषकार हरिषेण पुन्नाटसंघीय रहे हैं और इसलिए सम्भावना यही है कि उन्हें यह कथा अनुश्रुति से प्राप्त हुई हो और यतिवृषभ उन्हीं के परम्परा के प्राचीन आचार्य रहे हों। पुनः यतिवृषभ के देहत्याग की यह घटना उत्तर भारत के श्रावस्ती नगर में घटित हई थी। उत्तर भारत ही बोटिक या यापनीयों का केन्द्र था। इससे भी यही निष्कर्ष निकलता है कि यतिवृषभ उत्तर भारतीय अचेल परम्परा के आचार्य हैं। ___ यतिवृषभ को यापनीय मानने में एकमात्र बाधा यह है कि उनकी तिलोयपण्णत्ति में आगमों के विच्छेद का जो क्रम दिया गया है, वह यापनीय परम्परा के अनुकूल नहीं है, क्योंकि अपराजित (९ वीं शती) अपनी विजयोदया टीका में आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन, बृहदकल्प, व्यवहार, निशीथ, जीतकल्प आदि आगमों का न केवल नामोल्लेख कर रहे हैं, अपितु उनके अनेकों वाक्यांश या गाथायें भी उद्धृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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