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________________ यापनीय साहित्य : १०९ यापनीय और श्वेताम्बर दोनों ही रहे हैं। जहाँ तक कसायपाहुड के चूर्णिसूत्रों का प्रश्न है वे यतिवृषभ के कहे जाते हैं । यतिवृषभ का एक अन्य ग्रन्थ तिलोयपण्णत्ति भी उपलब्ध है किन्तु जैसा कि प्रबुद्ध दिगम्बर विद्वान् पं० नाथूराम प्रेमी, पं० फूलचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री आदि का कहना है कि इस ग्रन्थ में पर्याप्त मिलावट हुई है । अतः उसके आधार पर यतिवृषभ की परम्परा का निश्चय नहीं किया जा सकता है। किन्तु यदि हम मात्र कसायपाहुड की चूणि पर विचार करें तो उसमें ऐसा कोई भी संकेत उपलब्ध नहीं होता जिनके आधार पर यतिवृषभ को यापनीय मानने में बाधा उत्पन्न हो। पं० हीरालालजी जैन ने कसायपाहुड को प्रस्तावना में स्पष्टरूप से यह स्वीकार किया है कि यतिवृषभ के सम्मुख षट्खण्डागम, कम्मपयडी, सतक और सित्तरी, ये चार ग्रन्थ अवश्य विद्यमान थे । पुनः उन्होंने विस्तारपूर्वक उन सन्दर्भो को भी प्रस्तुत किया है, जो कसायपाहुडचूणि और इन ग्रन्थों में पाये जाते हैं। विस्तारभय से हम यहाँ केवल निर्देश मात्र कर रहे हैं । उन्होंने कसायपाहुडचूणि, कम्मपयडीचूर्णि, सतकचूर्णि और सितरीणि का तुलनात्मक विवरण भी प्रस्तुत किया है । तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन के इच्छुक विद्वान् उनकी कसायपाहङ की भूमिका देख सकते हैं। यद्यपि कसायपाहड की चणि की कम्मपयडी चूर्णि, सतकचूर्णि और सित्तरीचूर्णि से जो शैली और विचारगत समरूपता है उसके आधार पर उन्होंने कम्मपयडीचूर्णि, सतकचूर्णि और सित्तरीचूर्णि के रचयिता भी यतिवृषभ ही हैं-ऐसा अनुमान किया है। वे लिखते हैं कि सतकचूर्णि, सित्तरीचूणि, कसायपाहुडचूर्णि और कम्मपयडीचूर्णि, इन चारों हो चूर्णियों के रचयिता एक ही आचार्य हैं। कसायपाहुडचूणि के रचयिता यतिवृषभ प्रसिद्ध ही हैं। शेष तीनों चूर्णियों के रचयिता, उपयुक्त उल्लेखों से वे ही सिद्ध होते हैं । अतः चारों चूर्णियों की रचनाएँ आचार्य यतिवृषभ की ही कृतियाँ हैं । किन्तु यदि हम निष्पक्ष भाव से विचार करें, तो पं० हीरालाल जी की यह मान्यता उनके साम्प्रदायिक आग्रह का ही परिणाम है। यह सत्य है कि इन ग्रन्थों में विषयवस्तुगत और शैलीगत समानताएँ हैं किन्तु इस समानता के आधार पर यह निष्कर्ष निकाल लेना कि ये सभी यतिवृषभ की कृतियाँ हैं उचित नहीं हैं। क्या मूलाचार, आवश्यकनियुक्ति, १. देखें-कसायपाहुडसुत्त, प्रस्तावना पृ० २८ २. वही, प्रस्तावना पृ० ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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