________________
यापनीय साहित्य : १०३
४. जहाँ प्रज्ञापना सूत्र भगवती के समान प्रश्नोत्तर शैली में लिखा गया है, वहाँ षट् खण्डागम में विवेचन शैली का अनुसरण है । यद्यपि षट्खण्डागम में कुछ प्रश्न-उत्तर भा संग्रहीत हैं ।
५. प्रज्ञापना एक ही आचार्य की संग्रहकृति है उसमें कोई चूलिका नहीं है, किन्तु षट्खण्डागम की स्थिति इससे भिन्न है, उसमें अनेक चूलिकाएँ भी समाविष्ट हैं ।
६. जहाँ प्रज्ञापना सूत्र - शैली का ग्रन्थ है वहाँ षट्खण्डागम अनुयोग या व्याख्या शैली का ग्रन्थ है |
७. उपयुक्त कुछ भिन्नताओं के होते हुए भी षट्खण्डागम और प्रज्ञापना में निरूपणसाम्य और शब्दसाम्य है । प्रज्ञापना की गाथायें क्र० ९९-१००-१०१ षट्खण्डागम में सूत्र क्र० १२२-२३-२४ में पायी जाती हैं । किन्तु जहाँ इमं भणिदं कहकर इन गाथाओं को षट्खण्डागम में उद्धृत किया गया है वहाँ प्रज्ञापना में ऐसा कोई निर्देश नहीं है । इन गाथाओं के अतिरिक्त महादण्डक की चर्चा दोनों में बहुत कुछ समान रूप में मिलती है । अल्पबहुत्व की इस चर्चा को प्रज्ञापना में २६ द्वारों के द्वारा विवेचित किया गया है जबकि षट्खण्डागम में मात्र गति आदि १४ द्वारों के आधार पर इसकी चर्चा की गई है । प्रज्ञापना में जो अधिक द्वार हैं उनका कारण यह है कि उनमें जीव और अजीव दोनों की दृष्टि से विचार किया गया है जबकि षट्खण्डागम में मात्र जीव की दृष्टि से विचार किया गया है । षट्खण्डागम के १४ द्वार प्रज्ञापना में भी उसी नाम से मिलते हैं, मात्र क्रम का अन्तर है ।
८. जहाँ प्रज्ञापना में महादण्डक में जीव के ९८ भेदों का उल्लेख है वहाँ षट्खण्डागम के महादण्डक में जीव के मात्र ७८ भेदों का उल्लेख है । प्रस्तुत प्रकरण में प्रज्ञापना में वैचारिक विकास देखा जाता है जबकि यहाँ षट्खण्डागम प्राचीन परम्परा का अनुसरण करता है । किन्तु अन्य प्रकरणों में प्रज्ञापना की अपेक्षा षट्खण्डागम में विकास देखा जाता है ।
९. प्रज्ञापना और षट्खण्डागम दोनों में ही तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि पद की प्राप्ति की चर्चा है ।
१०. जिस प्रकार प्रज्ञापना में नियुक्तियों की अनेक गाथाएं हैं उसी प्रकार षट्खण्डागम में भी नियुक्तियों की अनेक गाथाएं मिलती हैं, इससे यह ज्ञात होता है कि दोनों किसी समान परम्परा से ही विकसित हुए हैं । षट्खण्डागम पुस्तक १३ में सूत्र ४ से १६ तक की गाथाएं आवश्यक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org