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________________ यापनीय साहित्य : ८९ कि यापनीय हो अविभक्त उत्तर भारतीय आगमिक साहित्य के उत्तराधिकारी रहे हैं । ९. कसा पाहुड के व्यञ्जनाधिकार में क्रोध, मान, माया और लोभ के जिन ५२ पर्यायवाची नामों का उल्लेख है, उनमें अधिकांश वे ही हैं जिनका उल्लेख भगवती सूत्र के बारहवें शतक में तथा समवायांग के ५२ वें समवाय में हुआ है । भगवती में कहीं-कहीं क्रम और संख्या की दृष्टि से अन्तर अवश्य है किन्तु समवायांग में संख्या और नाम की समानता है । नामों में भी कुछ शब्दभेद है, अर्थभेद नहीं है । तुलना के लिए देखिए कोहो य कोव रोसो य अक्खम संजलण- कलह वडूढी य । झंझा दोस विवादो दस कोयट्टिया होंति ॥ ८६॥ माण मद दप्प थंभो उक्कास पगास तधसमुक्कस्सो । अत्तुक्करिसो परिभव उस्सिद दसलक्खणो माणो ॥ ८७॥ माया य सादिजोगे णियदी विय वचणा अणुज्जुगदा । गहणं मणुण्णमग्गण कक्क कुहक गुणच्छण्णो ॥ ८८॥ कामो राग णिदाणो छंदो य सुदो य पेज्ज दोसो य । हाणुराग आसा इच्छा मुच्छा य गिद्धी य ॥ ८९ ॥ | सासद पत्थण लालस अविरदि तण्हा य विज्ज जिब्भा । लोभस्स णामधेज्जा बोसं एगट्टिया भणिदा ( ५ ) ||१०|| कसा पाहुड सुत्तगाथा ८६-९० १. मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स बावन्नं नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा - कोहे कोवे रोसे दोसे अखमा संजलणे कलहे चंडिक्के भंडणे विवाए । माणे मदे दप्पे थंभे अत्तुक्कोसे गव्वे परपरिवाए उक्कोसे अवक्कोसे उन्नए उन्नामे | माया उवही नियडी बलए गहणे णूमे कक्के कुरुए दंभे कूडे जिम्हे कब्बिसिए अणायरणया गूहणया वंचणया पलिकु चणया सातिजोगे । लोभे इच्छा मुच्छा कंखा गेही तिन्हा भिज्जा अभिज्जा कामासा भोगासा जीवियासा मरणासा नंदी रागे ॥ समवायांग, समवाय ५२ इससे यही सिद्ध होता है कि कसायपाहुड उत्तर भारत की अविभक्त निर्ग्रन्थ परम्परा का ग्रन्थ है, जो श्वेताम्बरों और यापनीयों को समान रूप से उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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