________________
શ્રુત ઉપાસક રમણભાઈ
४७१
रमणभाई शाह : एक जीवन्त आदर्श
प्रो. सागरमल जैन डॉ. रमणभाई शाह से मेरा सम्पर्कलगभग पच्चीसवर्ष पूर्व काहै। अनेक जैन साहित्य समारोहों में उनसे मिलने का सौभाग्य मुझे प्राप्त होता रहा । मात्र यही नहीं, उनके द्वारा आयोजित होनेवालीपर्युषणव्याख्यानमालाओं में भी अनेक बार व्याख्यान देने का अवसर भी मुझेप्राप्त हुआ है। उनका और मेरा यह नैकट्य निरन्तर गहन होता गया । पार्श्वनाथ विद्यापीठ में मेरे आगमन के पश्चात अनेक ग्रंथों के प्रकाशन में उनका सहयोग मिलता रहा । वस्तुत: वे उस संस्था के मार्गदर्शक और सहयोगी के रुप में कार्य करते रहे । अनेक बार पार्श्वनाथ विद्यापीठ भी पधारे । नैकट्य के इन क्षणों में उनके व्यक्तित्व और कार्यशैलीकोदेखने और समझने का अवसर भी मिला। वस्तुतः वेविद्या के अहंकार से रहित एक सहज और सरल व्यक्तित्व के धारक थे । “विद्या ददाति विनयं' की सुक्ति उनके जीवन में साकार हो गई थी। जैन धर्म, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में उनका ज्ञानगहन और गम्भीर था । व्यवहार में परम्परा विशेष से सम्बन्ध होकर भी वे सम्प्रदायातीत और सत्य के जिज्ञासु रहे । वे जैन दर्शन के 'अनेकता में एकता' के सिद्धान्त के संपोबल थे। उनकी जीवन शैली संयमित और सन्तुलित थी। वे 'सादा जीवन एवं उच्च विचार' के प्रतीक थे। उनका व्यक्तित्व अखण्ड था। उनके व्यक्तित्व और जीवन में कथनी और करणीकीएकरुपता थी। संसार में और परिवार में रह कर भी वे जल कमलवत्ररहे। उन्हें अपने ज्ञान और बौद्धिक प्रतिभाकोसदैवपरमार्थसेयोजित रखा.यहांतककि अपने ग्रंथोंपर कॉपी राईट का अधिकार' भी उन्होंने छोड दियाथा। वे मात्र साहित्य के ही साधक नहीं थे, अध्यात्म के भीगहन साधक थे। ज्ञान को उन्होंने अपने जीवन में जीने काप्रयत्न किया था। गृहस्थ जीवन में रह कर भी वेएक संत पुरुष की तरह हीजीए । यही कारण रहा कि अनेक साधु-साध्वी भी उन्हें एक आदर्श पुरुष' के रुप में स्वीकार करते हैं। अपनी बौद्धिक प्रतिभा को उन्होंने समाज में बिखेरा और लुंटाया, ऐसे व्यक्तित्वका बिदाहोजाना निश्चय ही हम सब के लिए एक दुःखद क्षण है, किन्तु यदि हम उनके विपुल एवं निर्मल ज्ञान शरीर को देखते हैं तो निश्चित ही ऐसा लगता है कि रमणभाई शाह आज भी हमारे बीचजीवित है और युगों-युगों तक उनका यह ज्ञानशरीर समाज को मार्गदर्शन और प्रेरणा देता रहेगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org