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શ્રુત ઉપાસક રમણભાઈ
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जैन इतिहास के प्रखर विद्वान अगरचंदजी नाहटा आपसे मिलने बंबई आते ऐवं पृच्छा करते तो आप कहते सुबह सामायिक, पूजा पश्चात ही समागम हो सकेगा।
मैने एक वक्त पर्युषण व्याख्यानमाला के विषय में बातचीत की तो कहा कि जैनत्व से अपरिचित को जैतत्व की पहचान हेतु संगठित करने में विविधता जरुरी है . जो अनेक विषयों के विद्वान शासन के प्रमाणित वक्तव्य से सुप्त चेतना को जागृत करने का प्रयास है, किन्तु वास्तविक तो जो परंपरा है वही है ! एवं मैं भी समय मिलते उसी स्थान पहुंचता हूं यानि संस्कृति का भी कितना गौरव था । __ आपकी एक विशिष्ट प्रकृति थी कि कभी भी पत्र सामान्य हो या विषयगत प्रश्न वाले हो प्रत्युत्तर अविलंब प्राप्त होता था । वीर प्रभु के वचन भाग-1 का यहां हिन्दी भाषा का विमोचन कुमारपालभाई वि. शाह के हाथों हुआ था । जिनतत्त्व भाग-1 का हिन्दी भाषा में प्रकाशन होने जा रहा है । आगे सभी भाग प्रकाशित हो यह पुरुषार्थ है । भावि भाव ज्ञानीगम्य है । आप की संस्था से प्रकाशित जिनवचन ग्रंथ हमें भी बहुत उपयोगी रहा तथा विशिष्ट व्यक्ति बहुमान भाव से स्वीकृत करते हैं ।
एक आध्यात्मिक साहित्य क्षेत्र का द्वार अवरुद्ध हो गया । उपलब्धि का ऐक स्रोत रुक गया । अन्त में आप की आत्मा जहां भी पहुंची हो वहां आपकी साधना अविराम प्रगतिशील रहे ! इसी सद्भावों के साथ.
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