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શ્રુત ઉપાસક ૨મણભાઈ
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'जैन जगत के प्रकांड विद्वान साहित्य दिवाकर डॉ. रमणलाल शाह'
पू. साध्वी निपुणाश्रीजी महाराज-रायपुर
भाईश्री डॉ. रमणभाई ने हमारे बीच से पार्थिव देह से चिर बिदाई ले ली । परिवार में व्यक्ति वियोग की व्यथा सहज है ही किन्तु जिनशासन में एक प्रकांड विद्वान तथा आगमपाठों के साथ गहन तत्त्वज्ञान के तलस्पर्शी विवेचक की अपूरणिय क्षति हुई है । जिसकी पूर्ति वर्तमान में संभव नहीं !
सांसारिक संबंध में भाई होने के कारण मुझे दीक्षा की आज्ञा दिलाने में भी आपका पूर्ण सहयोग रहा । अद्यपर्यन्त आप द्वारा लिखित लगभग सभी ग्रंथ पोस्ट से प्राप्त होता रहा एवं उन ग्रंथों का स्वाध्याय अनवरत सामूहिक रुप से चल रहा है । सहज सरल भाषा में अध्यात्म को आगम पाठ से प्रमाणित करते हुए इतना विशद विवेचन किया है जिसका वांचन करते करते हृदय बडा गद्गद् होता है एवं मस्तिष्क अहोभाव से झुक जाता है।
आपके द्वारा लिखित और संपादित 'जिनतत्त्व', 'अध्यात्मसार', 'वीर प्रभु ना वचनो', 'प्रभावक स्थविरो', 'ज्ञानसार', के 'जैन धर्मना पुष्पगुच्छ', 'सांप्रत सहचिंतन' आदि ग्रंथ आध्यात्मिक जीवन शैली प्रदान करने में पूर्ण सक्षम है साथ ही रास आदि में महापुरुषों के जीवन का सजीव वर्णन बहुत ही रसप्रद सधी हुई शैली में किया है । ‘पासपोर्ट नी पांखें' पुस्तक में वैदशिक जीवन शैली का
आबेहूब चित्रण हुआ है जिसमें वाली द्वीप में मनाये जाने वाले पर्व की पद्धति में प्राय: जैनों की उत्कृष्ट आराधना संवत्सरी के समकक्ष की अनुभूति कराता है । 'प्रबुद्ध जीवन' में तथा साहित्य सर्जन के क्षेत्र में आपकी बहुमुखी प्रतिभा का दिग्दर्शन होता है । निष्कर्ष की भाषा में आप जीवन पर्यन्त आध्यात्मिकता में निमग्न रहे ।
दो-तीन माह पूर्व आपने लिखा था कि अभी ज्ञानसार का अनुवाद चल रहा
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