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________________ प्राकृत वाक्यरचना बोध निश्चय--वणे देमि (निश्चयं ददामि) । विकल्प-होइ वणे न होइ (भवति वा न भवति)। अनुकम्प्य----दासो वणे न मुच्चइ (दासोनुकम्प्यो न त्यज्यते)। संभावन-नत्थि वणे जं न देइ विहिपरिणामो (यद् नास्ति वणे यद् न दाति विधिपरिणामः) । नियम ५३ [मणे विमर्श २१२०७] मणे अव्यय विमर्श अर्थ में । मणे सूरो (मन्ये सूर्यः) । नियम ५४ [अम्मो आश्चर्ये २०२०८] अम्मो अव्यय आश्चर्य अर्थ में । अम्मो कह पारिज्जइ (अम्मो कथं पार्यते) । नियम ५५ [स्वयमोथै अप्पणो न वा २०२०६] अप्पणो अव्यय स्वयं अर्थ में विकल्प से । विसयं विअसंति अप्पणो कमलसरा (विशदं विकसन्ति स्वयमेव कमलसरांसि) पक्षे-सयं चेअ मुणसि करणिज्ज (स्वयमेव जानासि करणीयम्) । नियम ५६ [प्रत्येकमः पारिक्कं पारिएक्कं २०२१.] प्रत्येक अर्थ में पाडिक्कं, पाडिएक्कं और पत्तेयं अव्यय है । नियम ५७ (उअ पश्य २।२११) उअ अव्यय पश्येत् (देखो) अर्थ में विकल्प से । उअ लोआ गच्छंति (पश्य लोका: गच्छंति)। नियम ५८ [इहरा इतरथा २२२१२] इहरा अव्यय इतरथा अन्यथा के अर्थ में । इहरा नीसामन्नेहिं (इतरथा निःसामान्यै)। नियम ५६ [कसरि झगिति संप्रति २०२१३] झगिति (शीध्र) संप्रति (अभी) इन दो अर्थों में एक्कसरिअं अव्यय ।। नियम ६० [मोरउल्ला मुधा २१२१४] मोरउल्ला अव्यय मुधा (व्यर्थ) अर्थ में । मोरउल्ला जंपसि (मुधा जल्पसि)। नियम ६१ [दरार्धाल्पे २१२१५] दर अव्यय अर्ध और अल्प अर्थ में । दर विअसि (अर्धेन विकसितं, ईषत् विकसितं)। नियम ६२ [किणो प्रश्ने २१२११] किणो अव्यय प्रश्न अर्थ में । किणो धुवसि (किं धुवसि)। नियम ६३ [इजेराः पादपूरणे ॥२१७] इ, जे, र ये तीन अव्यय पाद पूरण में। न उणा इ अच्छीइं (न पुनः अक्षीणि), अणुकूलं वोत्तुं जे (अनुकूलं वक्तुम्), गेण्हइ र कमल गोवी (गृह्णाति रे कमलगोपी) । नियम ६४ [प्यावयः २।२१८] पि वि, अपि समुच्चय अर्थ में । सायरो वि (सागरो अपि) जम्मो पि (जन्म अपि) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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