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छह
० यंत्र संबंधी आधुनिक शब्द जो संस्कृत में जोडे गए हैं, उनका प्राकृती
करण किया गया है। ० परिशिष्ट पांच में प्रत्येक वर्ग के शब्दों तथा स्फुट शब्दों को हिन्दी
के अकारादि क्रम से दिया गया है। ० शब्दों को प्रथमा विभक्ति के एक वचन के रूप में सूचित किया गया
है, जिससे अकारान्त शब्दों के लिंग का ज्ञान प्रथम दर्शन मात्र से हो जाता है । अनुस्वार अंत वाले नपुंसकलिंगी, ओकार अंत वाले पुंलिंगी
और आकार अंत वाले स्त्रीलिंगी होते हैं। ० इकारान्त, उकारान्त आदि शब्दों के लिंग की पहचान उनके आगे दिए गए लिंग के प्रथम अक्षर से हो जाती है-(न) नपुंसक, (पुं)
पुंलिंग, (स्त्री) स्त्रीलिंग का सूचक है। ० देशीय शब्दों के लिए (दे०), त्रिलिंगी शब्दों के लिए (त्रि.) और
विशेषणवाची शब्दों के लिए (वि) शब्द संकेत है। • विशेषणवाची शब्द विशेष्य के अनुसार तीनों लिंगों में व्यवहृत
होता है। ० एक पाठ में एक वर्ग के कम से कम दस शब्द हैं, कहीं कुछ अधिक भी
० प्रयोगवाक्य शीर्षक के अन्तर्गत वर्ग के शब्दों से वाक्य बनाकर दिखाया गया है और शब्दों का प्रयोग करो-इस शीर्षक के अन्तर्गत
उन्हीं वर्ग के शब्दों से प्राकृत में वाक्य बनाए गए हैं। • धातुसंग्रह में एक पाठ में प्रायः दस धातुएं दी गई हैं, प्रारंभ के पाठों
में कुछ कम भी हैं। • धातुसंग्रह पाठ ६ से प्रारंभ किया है, जो निन्नानवे पाठ तक चलता
है। उससे आगे नियमों के अन्तर्गत जो धातुएं हैं उनकी आदेशधातुएं
दी हैं। ० धातु प्रयोग शीर्षक के अन्तर्गत पाठ की धातुओं से वाक्य बनाकर दिखाए गए हैं । धातुओं का प्रयोग करो---शीर्षक के अन्तर्गत विद्यार्थियों से प्राकृत में वाक्य बनवाए गए हैं। ० पाठ ६ से अव्यय संग्रह चलता है, जो पाठ इकतीस तक पूरा होता है । अव्ययों से भी वाक्य बनाकर दिखाए गए हैं और उनके वाक्य
बनवाए गए हैं। ० समास, तद्धित के प्रत्यय, धातुओं के कालरूप, प्रेरक तथा भाव कर्म के रूपों और कृदन्त के प्रत्ययों से भी वाक्य बनाए गए हैं तथा विद्यार्थियों
से बनवाए गए हैं। • एक पाठ में बीस से अधिक वाक्य बनाकर दिखाये गए हैं और उतने
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