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________________ प्रकृतिभाव संधि शब्द संग्रह (गृहसामग्री) मूसल-मूसलं, कडतं ऊंखली--उऊहलं, अवअण्णो लोढा--लोढो शिला--सिला स्टोव.-उद्घमाणं (सं) चलनी-चालणी - छाज---सुप्पो पुराना छाज आदि-कडंतरं (दे.) वर्तन----पत्तं, भायण मशहरी-मसहरी बोरा---पसेवो रस्सी-रज्जू (स्त्री) लालटेन-कायदीविया (सं) दीया--दीवओ, दीवगो बत्ती-~-वत्तिआ,वत्ती दियासलाई-दीवसलागा खरल-खल्लं (सं) छींका-सिक्कगो, सिक्कगं टब--दोणी (सं) चक्की–णीसा (दे०) घरट्टो (दे०) झाडू-बोहारी, संमज्जणी, वद्धणिआ। पातु संग्रह कुट्ट-कूटना संमज्ज–बुहारना घरस--रगडना मेलव-मिलाना रोसाण-मार्जन करना, शुद्धकरना पेस---भेजना उवजूंज-उपयोग में लेना अग्घ—अच्छे मूल्य में बेचना छाय, छाअ---ढांकना सास-हुकम करना अव्यय संग्रह इहरा (इतरथा)-~~-अन्यथा नहीं तो दर (दे.)--आधा, थोड़ा तए (तदा)--तब णवर (दे.)-केवल तहिं (तत्र)--वहां तहा, तह (तथा)--उस तरह अम्ह (अस्मद) सब याद करो। देखो-परिशिष्ट १ संख्या ५० । प्रकृतिभाव संषि ___ जहां दो पद मिलकर एक पद बन जाते हैं और वे यथावस्थित अवस्था में रह जाते हैं उन्हें प्रकृतिभाव संधि कहते हैं। नियम ७ (न युवर्णस्यास्ये ११६) इवर्ण और उवर्ण से आगे कोई विजातीय स्वर हो तो संधि नहीं होती। इवर्ण+स्वर (इवर्ण को छोड़कर)-प्रकृतिभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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