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परिशिष्ट ७
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(२३)
क्षीणं-छीणं (२६) अनुस्वार के पूर्व के दीर्घ का ह्रस्ववैदिक
प्राकृत युवाम्-युवम्
मांस-मंस (प्रा- ११७०) (ऋ. सं. १११५-६) पांसु-पंसू
कांस्य-कंस
मालाम्-मालं (२७) विसर्ग का ओवैदिक
प्राकृत सः चित्-सो चित्
देवः अस्ति-देवो अस्थि (ऋ. वे. पृ. १११२)
सर्वतः-सव्वओ संवत्सरः अजायत-संवत्सरो पुरत:-पुरओ
अजायत मागतः-मग्गओ (ऋ. सं. १-१६१-१०-११) (प्रा० ११३७) आपः अस्मान्-आपो अस्मान् पुनः एति--पुणो एति
(वै. प्र. ६।१।११७) (२८) ह्रस्व को दीर्घ तथा दीर्घ को ह्रस्व
प्राकृत एव-एवा
अहवा-अहवा (अथवा) अच्छ-अच्छा
एक-एवा (एव) (4. प्र. ६।३।१३६) जह-जहा (यथा) ध--धा
तह-तहा (तथा) मक्षु-मक्ष
(११६७)
चतुरन्त-चाउरंत अत्र---अत्रा
परकीय--पारक्क यत्र-यत्रा
विश्वास-वीसास पुरुष--पूरुष
मनुष्य-मणूस दुर्दभ-दूदभ
मिश्र-मीस दुर्लभ-दूलभ
पश्य-पास (ऋ. संस्कृत ४६८)
(१।४३) (२६) अक्षरों का व्यत्ययवैदिक
प्राकृत निसृकर्त्य-निष्टयं
आलान-आणाल
वैदिक
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