SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 481
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६४ द्वि० ० महं महूइँ, महूई, महूणि महूहि महूहिं, महूहिँ, महत्तो, महूओ, महूउ, महूहिन्तो महूसुन्तो महूण, महूणं महूसु, महूसुं हे महू, हे महूई, हे महूणि (प्रथमा, द्वितीया और संबोधन को छोड़कर शेष रूप साहु शब्द की तरह चलते हैं । तृ० महुणा पं० महुणो, महत्तो, महूओ महूर, महूहिन्तो ० महुणो, महुस्स च०, स० महम्मि सं० हे मह व्यंजनान्त शब्द नपुंसकलिंग नपुंसकलिंग में व्यंजनान्त शब्द के अंतिम वर्ण का लोप हो जाता है । शेष शब्द अकारान्त, इकारान्त, और उकारान्त रहते हैं । और महु की तरह चलते हैं । सुविधा की दृष्टि से कुछेक दिए जा रहे हैं । उनके रूप वण, दहि शब्दों के रूप नीचे ३३ प्र० अंसुं द्वि० अंसुं ३४ प्र ० दामं एकवचन बहुवचन अंसू, अंसू, अंसूणि अंसूइँ, अंसू, अंसूणि (शेष रूप महु शब्द (३२) की तरह चलते हैं ) । प्र० नामं द्वि० नामं द्वि० दामं तृ० दामेण पं० दामत्तो, दामाओ, दाभाउ दामाहि, दामाहिंतो च०, ष० दामस्स स० दामम्मि सं० हे दाम ३५ अश्रु (अंसु ) शब्द प्राकृत वाक्यरचना बोध नकारात्मक दाम ( दामन् ) नपुंसकलिंग शब्द दामाइँ, दामाई, दामाणि एकवचन Jain Education International दामाण, दामाणं दामेसु, दामेसुं हे दमाईं, हे दामाई, हे दामाइ नकारान्त नाम ( नामन् ) नपुंसकलिंग शब्द दामाइँ, दामाई, दामाणि दामेहिं, दामेहिं, दामेहिँ दामत्तो, दामाओ, दामाउ, दामाहि दामा हिन्तो, दामासुन्तो (शेष रूप दामन् शब्द की तरह चलते हैं ।) बहुवचन नामाईं, नामाई, नामाणि नामाइँ, नामाई, नामाणि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy