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________________ ४५७ परिशिष्ट १ अप्पाहिन्तो, अप्पा अप्पाहिन्तो, अप्पेहिन्तो, अप्पासुन्तो, अप्पेसुन्तो च०, १० अप्पाणस्स, अप्पस्स, अप्पाणाण, अप्पाणाणं, अप्पाण अप्पणो, अत्तणो अप्पाणं, अप्पिण, अत्ताणाण, अत्ताणाणं स० अप्पाणम्मि, अप्पाणे, अप्पम्मि अप्पाणेसु, अप्पाणेसुं, अप्पेसु अप्पे, अत्ताणम्मि (अप्पंसि) अप्पेसु, अत्ताणेसु, अत्ताणेसुं (अप्पाणंसि) सं० हे अप्पाणो, हे अप्पो, हे अप्प हे अप्पाणो, हे अप्पाण, हे अप्पा (अप्प शब्द के रूप राजन् की तरह और अप्पाण शब्द के रूप जिण शब्द की तरह चलते हैं। इसी प्रकार ब्रह्मन् (बम्ह, बम्हाण) युवन् (जुव, जुवाण) ग्रावन् (गाव, गावाण) उक्षन् (उच्छ, उच्छाण) शब्दों के रूप चलते हैं ।) १६ नकारान्त महव, महवाण (मघवन्) शब्द एकवचन बहुवचन प्र० महवा महवा द्वि० महवं महवा तृ० महवेण, महवेणं महवेहि, महवेहि, महवे हिँ ५० महवत्तो महवाओ महवाउ महवत्तो, महवाओ, महवाउ, महवाहि, महवाहि, महवाहितो, महोणो महवेहि, महवाहितो, महवासंतो च०, १० महवस्स, महवाण, महवाणं स० महवे, महविम्मि महवेसु, महवेसुं ___ अकारान्त महवाण शब्द के रूप जिण शब्द की तरह चलते हैं। १७ नकारान्त मुद्ध, मुद्धाण (मुग्धन्) शब्द मुद्धा एकवचन बहुवचन प्र० मुद्धा मुद्धा द्वि० मुद्धं तृ० मुद्धेणे, मुद्धेणं मुद्धेहि, मुद्धेहि, मुद्धेहिँ पं० मुद्धत्तो, मुद्धाओ, मुद्धाउ, मुद्धत्तो, मुद्धाओ, मुद्धाउ, मुद्धाहि मुद्धाहि, मुद्धाहितो मुद्धेहि मुद्धाहितो, मुद्धासुन्तो च०, १० मुद्धणो, मुद्धस्स मुद्धाण, मुद्धाणं स० मुद्धम्मि, मुद्धे मुद्धेसु, मुद्धेसुं (मुद्धाण शब्द के रूप जिण शब्द की तरह चलते हैं) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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