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________________ धात्वादेश (७) ३६५ दक्खिणाओ लहइ । परे विभवे वट्टइ। तेण तीसे भारियाए सुबहु अलंकारजायं दिन्नं । सा निच्चमंडिया अच्छइ । तेण भन्नइ-~-एस पच्चंतगामो तो तुमं एयाणि आभरणणाणि तिहिपव्वणीसु आविधाहि, कहिं चि चोरा आगच्छेज्जा तो सुहं गोविज्जति । सा भणइ---अहं ताए वेलाए सिग्घमेवावणिस्सामि । अन्नया तत्थ चोरा पडिया । ते तमेव निच्चमंडिया गिहमणुपविट्ठा । सा तेहिं सालंकारा गहिया। सा य पणीयभोयणत्ताओ मंसोवचियपाणिपाया न सक्कइ कडाईणि अवणेउ। तओ चोरेहिं तीसे हत्थे पाए छेत्तूण अवणीयाणि गिहिउंच अवक्कंता। धातु का प्रयोग करो वह अपने काम पर जाता है। जो जाता है वह कहां आता है ? वह अच्छे व्यक्तियों की संगति करता है। श्रावक स्वागत के लिए साधुओं के सामने आते हैं । जो जाता है वह यहां वापस नहीं आता। उसके ध्यान से क्रोध शांत होता है। क्या बालक सारे दिन क्रीडा करेगा ? तुम्हारा अपूर्ण वाक्य मैं पूरा करता हूं। वह युद्ध की गति को तेज करता है । मकान की छत से वर्षा की बूंदें टपकती हैं। भडभुजे का चना गर्म रेत से उछलता है। वर्फ गलती है। अंकुर फूटता है। पांच वर्षों के बाद वह अपने देश वापस आता है। जो धर्म से च्युत होता है उसके लिए स्थान कौन-सा है ? किस दु:ख के कारण तुम घर से पलायन करते हो? प्रधानमंत्री देश को संदेश देता है। ईर्ष्या स्त्री जाति का जातिगत स्वभाव है । पुरुष का हृदय कठोर होता है। स्त्री का हृदय कोमल होता है । मनुष्य दूसरे की प्रगति को सहन नहीं करता है। किसी पर संदेह से आरोप मत लगाओ। अपनी संकल्पशक्ति बढाओ। संकल्प से असंभव कार्य भी संभव हो जाता है। मैं तुम्हारी प्रतीक्षा में बहुत समय से वर्षा में खडा हूं। प्राकृत में अनुवाद करो ___एक वृद्ध आदमी के छ पुत्र थे। वे हमेशा एक दूसरे से लडते थे। बूढे आदमी ने हर प्रकार से उनके बीच पारस्परिक स्नेह उत्पन्न करने का प्रयत्न किया। लेकिन उसके सारे प्रयास व्यर्थ हुए । अन्ततः एक दिन उसने सभी को अपने समक्ष बुलवाया। उसने उन्हें छड़ियों का एक वंडल दिया और वारीवारी से उसे तोडने का आदेश दिया । क्रमानुसार प्रत्येक ने पूरे बल के साथ प्रयत्न किया लेकिन कार्य सिद्ध न हुआ। उसके बाद पिता ने वंडल को खोल देने की आज्ञा दी। उसमें से प्रत्येक को एक-एक छडी देकर उसे दो भागों में तोडने का आदेश दिया। बिना किसी प्रयास के प्रत्येक ने छडी. तोड दी। पिता ने पुत्रों को कहा-एकता की शक्ति देखो। यदि तुम मित्रता के बंधन में बंधे रहोगे तो तुम्हें कोई भी हानि पहुंचाने में समर्थ न होगा। यदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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