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________________ घात्वादेश (३) ३७७ क्या तुम मुझे याद करते थे ? क्या वह मुझे भूल गया ? विनय को वहां कौन बुलाता है ? तेल की बूंद पानी पर फैलती है । तुम्हारा यश चारों ओर फैलता है। इत्र की गंध फैलती है। उसके घर से वर्षा का पानी बाहर क्यों नही निकलता ? तुम किस समय जागते हो ? कल से वह अपने काम में लगेगा। वह अपने भाषण को पांच मिनट में समेटता है। विनीत शिष्य अध्यापक का आदर करता है। उसने तुम्हारे पर प्रहार क्यों किया ? क्या भगवान स्वर्ग से नीचे उतरता है ? मैं तुम्हारा सब काम कर सकता हूं। क्या वह कभी महल से नीचे आता है ? वह स्वार्थवश ही तुम्हारी प्रशंसा करता है। वह भोजन को स्वयं पकाता है। तुम अपने अवगुणों को क्यों नहीं छोडते ? जो दुःख को सहता है वह साधक होना चाहिए। उसने तुमको क्यों ठगा? प्राकृत में अनुवाद करो एक सेठ के चार पुत्रवधुएं थीं। उनकी परीक्षा के लिए सेठ ने चारों को चावल के पांच-पांच दानें दिए और सुरक्षित रखने के लिए कहा । पहली पुत्रवधू ने लापरवाही से फेंक दिए और सोचा मांगेंगे तब धान्यागार से लाकर दे दूंगी। दूसरी ने उनको खा लिया। तीसरी ने उनको आभूषण की छोटी पेटी में सुरक्षित रख दिया। सोचा---ससुर ने दिए हैं तो कोई रहस्य होना चाहिए । चौथी पुत्रवधू ने खेत में उनकी बुवाई कराई। अच्छी फसल हुई। पांच वर्षों में विशाल भंडार हो गया । सेठ पांच वर्ष बाद घर आया। सब बहुओं से दाने मांगे। तीनों ने लाकर दे दिए। चौथी ने कहा-दाने मंगाने हों तो गाडी भेजो। सेठ ने चारों को पूछा, क्या-क्या किया ? सब ने अपनीअपनी क्रिया बताई। चारों का कार्य सुन सेठ ने चारों को घर का एक-एक कार्य सौंप दिया। दानों को फेंकने वाली वहू को सफाई का, खाने वाली को रसोई का, सुरक्षित रखने वाली को भंडार का कार्य सौंप दिया। चौथी को घर की स्वामिनी का भार दिया। प्रश्न १. महल, दाना, धान्यागार, सुरक्षित, रहस्य, भंडार, गाडी, वृत्ति, सफाई, __लापरवाही, रसोई बनाने वाली शब्दों के प्राकृत शब्द बताओ। २. कम्म, गुलल, सुमर, विम्हर, भल, वीसर, पम्हुस, पोक्क पयल्ल, महमह, उवेल्ल, धाड, णीहर, जग्ग, आअड्ड, सन्नाम, ओरस, तीर, पार, थक्क, सोल्ल, धंसाड, णिव्वल आदेश किन किन धातुओं को होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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