SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ प्राकृत वाक्यरचना बोध हैं। कार्य की सिद्धि में जितने सहायक होते हैं, वे साधन नहीं कहला सकते । साधन तो वही है जो साधकतम हो यानि क्रिया की सिद्धि में सबसे अधिक निकट संपर्क रखता हो । जैसे- - वह पेन से लिखता है । अध्यापक रमेश को डंडे से मारता है । इन दो वाक्यों में पेन और डंडा साधन है । कहीं-कहीं पर विवक्षा से साधन को कर्ता भी बनाया जाता है। जैसे, सुरेश तलवार से काटता है । यहां तलवार से साधन है । तलवार काटती है— इस वाक्य में तलवार जो साधन थी उसे कर्ता बना दिया गया है, यहां तलवार में प्रथमा विभक्ति होगी । संप्रदान को भी साधन बनाया जा सकता है । जैसे -- श्रावक साधु के लिए भिक्षा देता है। यहां साधु के लिए सम्प्रदान है । इस वाक्य को साधन में इस प्रकार बदल सकते हैं - श्रावक भिक्षा से साधु का सत्कार करता है । साधन केवल वस्तु ही नहीं बनती, मन, वचन और शरीर भी साधन बनते हैं। साधन में तृतीया विभक्ति होती है । तृतीया विभक्ति I १. सह, साअं, समं और सद्ध के योग में तृतीया विभक्ति होती है । २. पिहं, बिना और नाना शब्दों के योग में तृतीया या द्वितीया या पंचमी विभक्ति होती है । ३. जिस विकृत अंग के द्वारा अंगी का विकार मालूम हो उस अंग में तृतीया विभक्ति होती है । ४. जो जिस विशेष लक्षण से जाना जाए उसके लक्षण में तृतीया विभक्ति होती है । ५. आर्ष प्रयोगों में सप्तमी के स्थान पर तृतीया विभक्ति होती है । ६. जिस कारण या प्रयोजन से कोई कार्य किया जाता है या होता है, उसमें तृतीया विभक्ति होती है । प्रयोग वाक्य पिइज्जो जलं पिवइ । पिइज्जजाया पासणाहं जवइ । बप्पो सिद्ध सुमरइ | भाअरो कि जिंघई ! ससा सइ मालाए महावीर जवइ । पिउसियाणेयो सत्तुं जिइ । चुल्लपिउजाया पिउसियाणिज्जं णियगेहं णेइ । माउसियाणेयो सया सच्चं ओग्गहः । माउसिआणिज्जा माउलं सेवइ । पिज्जपुत्तो पइदिणं पिआमहीए सह भुंजइ । पिइज्जसुआए सरीरं वड्ढइ । अग्गओ किं जुज्झइ ? अणुओ कहं सुमरइ ? अणुओ खित्वं गच्छइ । भाओ अज्ज धणं लहर । घरिणी साहज्जे इच्छइ । तृतीया विभक्ति के प्रयोग वाक्य १. अग्गएण सह अणुओ गच्छइ । पिउसिआणिज्जाए समं पिउसिआणेयो भुंजइ । माउसिआणिज्जा भगिनीइ सद्ध जवइ । बहिणीए साअं अणुओ मुहु मुहु जुज्झइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy