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________________ ३६४ जलजाणं दिट्ठ । धातु प्रयोग सो तं आसासइ तुज्झ जीवणभारो हं वहिहिमि । पत्तेयजीवो पोग्गलाई आहरइ । अहं पइदिणं अन्नं आहारेमि । तुमं किमट्ठ वणे हिंडसि ? सा तलायत्तो नीरं आहरइ ! मज्झ दंतपंती ( अंतिमदांत ) कहं आहिल्लइ | आयरिओ साहुणो आहवेइ । किं साहुणो अज्ज अम्हाण गामे आगमिस्संति ? प्राकृत वाक्यरचना बाध प्रत्यय प्रयोग सो हसंतो कहं जंपइ ? विमला हसई कहं आगच्छइ ? सो धणं देयमाणो णयरत्तो बाहि गओ । लोएसो हसावमाणो कि जंपइ ? हसिज्जमाणस्स धणंजय यणाहितो अंसूई (आंसू ) पंडति । तेण भणिज्जमाणो गंथो गंभीरो अस्थि । तुम भणाविज्जई साहुणी संघपमुहा होहि । प्राकृत में अनुवाद करो ट्रक के द्वारा कल बैलगाडी में लोग वायुयान तेज गति से चलता है। रेलगाडी यहां नहीं ठहरेगी। मोटर सडक पर चलती है । साइकल की यात्रा सस्ती होती है। कश्मीर से सेवें आएंगी। रथ में बैठने वाला कोई नहीं है । क्यों बैठते हैं ? किस जाति के लोगों के पास भैंसागाडी अधिक हैं ? क्या तुम घोडा गाडी पर चढना चाहते हो ? गधागाडी भार अधिक ढोती है। गांव के लोग ऊंटगाडी पर चढ कर यात्रा करते हैं । अगनवोट की यात्रा सुख से होती है । नौकायात्रा में तूफान का भय रहता है । विशाल जहाज में आवश्यक सामग्री उपलब्ध होती है । धातु का प्रयोग करो . रमेश ने उसको सान्त्वना दी । तुमने सत्य कभी नहीं कहा। माता ने बच्चे के हाथ से छुरी छीन ली। मनुष्य क्या नहीं खाता है ? तुम गली में इधर-उधर क्यों घूमते हो ? माता आशा करती है कि मेरा पुत्र मेरी सेवा करेगा । तुम शहर से क्या लाए हो ? तुम्हारा दांत क्यों हिलता है ? तुम उसको यहां बुलाओ । उसका इस गांव में आना सफल हुआ । प्रत्यय का प्रयोग करो हंसता हुआ जो आदमी बोलता है उसे कहो वह न हंसे। उसने रोटी देती हुई बहन को देखा। हंसा जाता हुआ मनुष्य क्यों रोने लगा । हंसाता हुआ रमेश स्वयं नहीं हंसता है । पढी जाती हुई गाथा को शुद्ध करो । पढाया जाता हुआ मुनि क्या कहना चाहता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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