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________________ भावकर्म शब्द संग्रह (मास वर्ग) श्रावण-सावणं भाद्रव-भद्दवयं आसोज---आसोओ कार्तिक-कत्तिओ मृगसर--मग्गसिरो पोष-पोसो माह-माहो फाल्गुन-फग्गुणो चैत्र-चइत्तो... .. वैशाख-वइसाहो जेठ-जेट्ठो आषाढ----आसाढो धातु संग्रह संक--संशय-करना.. संखा-गिनती करना .. संकम-गति करना, जाना संगच्छ-स्वीकार करना संकल-जोडना, संकलन करना संघट्ट---स्पर्श करना संकेअ-संकेत करना । संघस-संघर्ष करना संकोअ--संकुचित करना संचाय-समर्थ होना भावकर्म भाव का अर्थ है क्रिया। जहां प्रत्यय केवल क्रिया अर्थ में ही होता है उसे भाववाच्य कहते हैं। जहां धातु से प्रत्यय कर्म में होता है उसे कर्मवाच्य कहते हैं। भाव में कर्म नहीं होता। जहां कर्म होता है उसे भाव नहीं कह सकते । दोनों में से एक रहता है, दोनों साथ नहीं रह सकते। * भाव का प्रयोग अकर्मक धातु से होता है। रोना, पैदा होना, सोना, लज्जित होना आदि उनके अर्थ वाली धातुएं अकर्मक होती हैं । खाना, पीना, देखना, करना आदि अर्थों में सकर्मक धातु का प्रयोग होता है। इन सकर्मक धातुओं में विवक्षा से कर्म का प्रयोग न करने से अकर्मक रह जाती हैं । प्राकृत में भाव-कर्म में दो प्रत्यय आते हैं—ईअ (ईय) और इज्ज। इन प्रत्ययों में से कोई एक प्रत्यय धातु के लगाने से भावकर्म की धातु के रूप बन जाते हैं। इन प्रत्ययों का प्रयोग वर्तमानकाल, विध्यर्थ, आज्ञा और हस्तन भूतकाल में ही होता है। भविष्यत्काल और क्रियातिपत्ति में भावकर्म के प्रत्ययों के रूप कर्तृवाच्य की तरह ही चलते हैं। नियम ६६८ (ईअ-इज्जो क्यस्य ३३१६०) संस्कृत में भावकर्म में क्य प्रत्यय होता है। प्राकृत में क्य प्रत्यय को ईअ और इज्ज ये दो आदेश होते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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