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स्वार्थिक प्रत्यय
___ शब्द संग्रह (रंगने वाले, आदि प्राणी) सांप-सप्पो, भुयंगो
छिपकली-घरोलिया, घरोली विच्छु-विच्छिओ
अजगर-अयगरो, अजगरो गिरगिट-सरडो
नेवला-णउलो गिलहरी-तिल्लहडी (दे०) मछली-मच्छो
___ खाडहिला(दे०) गोह-गोधा छछंदर-छच्छंदरं, छच्छंदरो (दे०)
धातु संग्रह वरिस-वरसना
वह-ढोना, पहुंचाना वव-बोना
वह-पीडा करना ववस-चेष्टा करना, प्रयत्न करना वाए-बजाना ववहर-व्यापार करना
वाए-पढाना वस-वसना, वास करना
वागर-प्रतिपादन करना स्वार्थ
__ स्वार्थ का अर्थ है-शब्द का अपना अर्थ। शब्द से प्रत्यय लगने के बाद भी शब्द का वही अर्थ रहता है। ऐसे अर्थ में होने वाले प्रत्ययों को स्वार्थिक प्रत्यय कहते हैं। प्राकृत में स्वार्थ में क, इल्ल और उल्ल प्रत्यय का प्रयोग होता है । संस्कृत में भी स्वार्थ में कप् (क) प्रत्यय होता है।
नियम ६४६ (स्वार्थे कश्च वा २६१६४) स्वार्थ में क, डिल्ल (इल्ल) डुल्ल (उल्ल) प्रत्यय विकल्प से होते हैं । क-चन्द्रकः (चंदओ) चन्द्रमा। गगनकः (गगणयं) गगन । इहकः, इह
(इहयं) यहां । आलेष्टुकं, आलेष्टुं (आलेठ्ठअं) इल्ल-पल्लवकः, पल्लवः (पल्लविल्लो) पत्र । पुरा, पुरो वा (पुरिल्लो) पहले उल्ल-मुखकः (मुहुल्लं) मुंह । हस्तकः (हत्थुल्लो) हाथ
नियम ६५० (ल्लो नवैकाद् वा २०१६५) नव और एक शब्द से स्वार्थ में ल्लो प्रत्यय विकल्प से होता है। नवः (नवल्लो, नवो) नया, नवीन । एकः (एकल्लो, एक्कल्लो, एक्को, एओ) एक, अकेला।
नियम ६५१ (उपरेः संव्याने २॥१६६) संव्यान (प्रावरण) अर्थ में उपरि शब्द से स्वार्थ में ल्ल प्रत्यय होता है। उपरितनः (अवरिल्लो)
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