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________________ ४ शीलादि प्रत्यय __ शब्द संग्रह (रोग वर्ग १) ग्रीवाफूलन-गंडमाला कंपनवात-वेवयो कोढ-कोढो हाथीपगा-सिलिवइ (वि) पागलपन-अवमारो राजयक्ष्मा (टी. बी) रायंसि (पुं) काणापन-काणियं उदररोग-उदरं कूबडापन-खुज्जियं . हस्तविकलता-कुणियो . गूंगापन-मूयं ...... पंगुता-पीढसप्पि (पुं) . .. भस्मकरोग-गिलासिणी आंधासीसी-अवहेडगो शोथ---सूणिओ बवासीर-अरसो जलंधर--जलोयरं केशझडना (गंजापन)-केसघायो (सं) ब्याऊ-पायफोडो पीठ में गांठ-पिट्टिगंठि (पुं० स्त्री) फुनसी--फुडिआ स्मृति-सई (स्त्री) प्रस्थान-पत्थाणं धातु संग्रह रोअ.-निर्णय करना। लक्ख-जानना, पहचानना रोह-उत्पन्न होना लग्ग-लगना, संग करना लंघ-लांघना लज्ज-शरमाना संछ-कलंकित करना लल-विलास करना, मौज करना लभ, लंभ-प्राप्त करना लय-ग्रहण करना, लेना शील आदि प्रत्यय शील आदि के तीन अर्थ हैं-शील (स्वभाव), धर्म (कुल आदि आचार), साधु (अच्छा)। संस्कृत में तृन्, इष्णु आदि प्रत्यय शील अर्थ में कर्ता से होते हैं । प्राकृत में इस अर्थ में इर प्रत्यय होता है। नियम ६३६ (शोलाखर्थस्पेरः २२१४५) शील, धर्म और साधु अर्थ में होने वाले प्रत्ययों को इर आदेश होता है। हसनशीलः (हसिरो) रोदनशीलः (रोविरो) लज्जावान् (लज्जिरों) " जल्पनशीलः (जम्पिरो) वेपनशील: (वैविरो) . भ्रमणशीलः (भमिरो) उच्छ्वसनशीलः (ऊससिरो) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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