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लिंगबोध
शब्द संग्रह (वृत्तिजीवी वर्ग १) धोबी-रजओ
सुनार-सोवण्णिओ, सुवण्णयारो नाई–णाविओ, पहाविओ लुहार-लोहारो, लोहयारो तेली-घंचियो, तेल्लिओ जुलाहा–कोलिओ, पडयारो कुंभार-कुलालो, कुंभआरो कंदोई-कंदवियो माली मालिओ, आरंभिओ मोची-मोचिओ, चम्मयारो दर्जी--सूइयारो
तंबोली-तंबोलिओ भडभूजा--भट्ठयारो
ठठेरा-तंबकुट्टओ
जूता-उवाणहा
कर्तव्य-कायव्वं हजामत-उवासणा
चमडे की धौंकनी-भत्थी
धातु संग्रह पडह-जलाना, दग्ध करना पडिआइय-फिर से ग्रहण करना पडिअग्ग---संभालना
पडिइ --पीछे लौटना, वापस आना पडिअर-बीमार की सेवा करना पडिउज्जम–संपूर्ण प्रयत्न करना पडिअर-बदला चुकाना । पडिउच्चार-उच्चारण करना पडिआइय-फिर से पान करना पडिउस्सस-पुनर्जीवित होना लिंगबोध
लिंग तीन प्रकार के होते हैं—पुरुषलिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग। जिस प्रकार विभक्ति और वचन के बिना नाम या संज्ञा का प्रयोग नहीं होता उसी प्रकार लिंग के बिना भी उसका प्रयोग नहीं होता। इसलिए लिंग का ज्ञान भी आवश्यक है। प्राकृत में लिंग व्यवस्था संस्कृत से कुछ भिन्न है । वह इस प्रकार है--
नियम ६१४ (प्रावट-शरत-तरणयः पुंसि १११३) प्रावृट्, शरत् और तरणि—ये तीनों शब्द संस्कृत में स्त्रीलिंगी हैं परन्तु प्राकृत में ये पुंलिंगी होते हैं । प्रावृष्–पाउसो । शरद्-सरओ । तरणि:-तरणी।
नियम ६१५ (स्नमदाम-शिरो-नमः ११३२) दामन्, शिरस् और नभस् शब्दों को छोडकर शेष सकारान्त और नकारान्त शब्द संस्कृत में नपुंसकलिंगी हैं परन्तु प्राकृत में पुंलिंगी हैं ।
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