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________________ २५८ प्राकृत वाक्यरचना बोध पगलइ ? केत्तिआ जणा सम्मत्तदिक्खं पगिण्हीअ। को अप्पाणं पच्चक्खी करिस्सइ ? सो रूवं गिज्झइ । सोवण्णिओ (सुनार) सुवण्णं पघंसइ । सरम्मि सरो पघोलेज्ज । थलीदेसे जणा उट्टा पचालंति । अहं पच्चक्खामि कल्लं न ण्हास्सामि । साहुणो विहिपुव्वयं ईरंति । भूतकाल के प्रत्यय प्रयोग सो निसाए चंदं पासीअ । हिमवपव्वयं को आरोहीअ ? सो विज्जालयं कहं न गच्छीअ ? तुम पोत्थयं कं दासी? अहं सुमिणे गुरुं दिक्खी। सो णियमित्तेण सह विवादीअ । तुज्झ मुहदसणं पावं त्ति को कहीअ ? साहू के सवीअ? मुणी जणहियाय उवदिसीअ (उपदेश दिया)। आइच्चो रहो अहियं तवीअ । वरिसा कया होअहीअ ? सो सिग्धं तत्थ कहं जाही? तुमं असच्चं कहं जंपीअ ? सो मज्झ साउज्जं (सहयोग) कासी। तुं पासिऊण सो कहं हसीअ ? सो किणा सुत्तेण तकारं लोवीअ (लोप किया) ? समणोवासगा गुरुं विण्णवीस साहूणं चउमासळं। रयणी दहिं पम्मत्थी । धणंजयो वि अज्ज विहारे थक्कीअ। प्राकृत में अनुवाद करो तुम्हारा मुंह देखने के लिए मैं बहुत दूर से आया हूं। जीभ में हड्डी (अट्टि) नहीं होती इसीलिए तुम अपने विचारों में स्थिर नहीं हो। बन्दर किसको दांत दिखलाता है ? ओठ, दांत और जीभ के लिए कपाट है। तुम्हारे गाल लाल कैसे हो गए ? कंठ की मधुरता सबको अपनी ओर खींचती है। कंठमणि को दबाने से आदमी तत्काल मर जाता है । तुम्हारे भाई की ठोडी लंबी है या वर्तुलाकार ? कंधे में भार को सहने की क्षमता होती है । काख के केशों को मत काटो। धातु का प्रयोग करो प्रत्येक पदार्थ एक दूसरे को खींचता है। पहाड से पानी झरता है। वह पुरस्कार (पुरक्कार) को ग्रहण करता है। मैं उससे साक्षात् करूंगा। उसकी धन के प्रति आसक्ति बढ रही है। मजदूर मकान की छत (छई) को बार-बार घिसता है । जिसका स्वर मिले वह गाना गाए। वह घोडे को दिनरात चलाता है। उसने तीस दिन तक भोजन का त्याग किया। तुम आज गांव से बाहर क्यों गए? भूतकालिक प्रत्ययों का प्रयोग करो ..तुम्हारा भाग्य किसने लिखा ? परीक्षा में प्रथम कौन आया ? तुमने संकल्प कब किया था ? तुम्हारा मंत्र-जाप सफल हुआ। अध्यापक ने तुमको पढाना कब छोडा ? वह अमेरिका कब' गया ? विदेश में जाकर किस साधु ने धन बटोरा ? राजेन्द्र ने इस शहर को छोड दिया। उसने विवाह कब किया ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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