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विध्यर्थ-प्रत्यय -.
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हसिज्ज, हसेज्ज, हसिज्जा, हसेज्जा हसिज्जा, हसेज्जा
हसिज्जइ, हसेज्ज इ मध्यमपुरुष हसिज्जासि , हसेज्जासि हसिज्जाह, हसेज्जाह
हसिज्जसि, हसेज्जसि उत्तमपुरुष हसिज्जामि, हसेज्जामि हसिज्जामो, हसेज्जामो
हो पातु के रूप प्रथमपुरुष होज्जए, होए, होएय . होज्ज, होज्जा
होज्ज, होज्जा मध्यमपुरुष होज्जसि, होज्जासि... होज्जाह उत्तमपुरुष होज्जामि
होज्जामो (विकरण वाली हो धातु के रूप हस धातु की तरह चलते हैं) - प्रथमपुरुप होइज्जए, होए, होएय होइज्ज, होएज्ज
होइज्ज, होएज्ज होइज्जा, होएज्जा
होइज्जा, होएज्जा मध्यमपुरुष होइज्जासि, होएज्जासि होइज्जाह, होएज्जाह
होइज्जसि, होएज्जसि उत्तमपुरुष होइज्जामि, होएज्जामि होइज्जामो, होएज्जामो .
(१) यदि क्रियापद के साथ उअ और अवि अव्ययों का संबंध हो तो इस
पाठ में बताए गए विध्यर्थ प्रत्ययों का प्रयोग हो सकता है। उम कुज्जा (चाहता हूं वह करे) अवि भुंजिज्ज (खाए भी)। श्रद्धा अथवा संभावना अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग के साथ इन प्रत्ययों का प्रयोग हो सकता है। सदहामि लोएसो लेहं लेहिज्ज । श्रद्धा (विश्वास) करता हूं लोकेश लेख लिखे । संभावेमि तुम न
जुज्झिज्जसि (संभावना करता हूं तुम नहीं लडो)। (३) जं के साथ कालवाचक कोई भी शब्द हो तो वहां विध्यर्थ प्रत्ययों का
प्रयोग होता है। कालो जं भणिज्जामि (समय है मैं पढू) । वेला जं
गाएज्जासि (समय है तू गा)। (४) जहां एक क्रिया दूसरी क्रिया का निमित्त बने वहां विध्यर्थ प्रत्ययों का
प्रयोग किया जाता है। जइ हं गुरुं उवासेय सत्यन्तं गच्छेय (यदि गुरु की उपासना करे तो शास्त्र का अंत पावे)। आर्ष प्राकृत में उपलब्ध कुछ अन्य रूपकुज्जा (कुर्यात)
अभिभासे (अभिभाषेत) सो निहे (निदध्यात्)
सिया, सिआ (स्यात्).
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