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________________ संयुक्त वर्णों का लोप द्वार का वार और दार दोनों रूप मिलते हैं। नियम ३९७ (रो न वा २८०) द्र शब्द के र का लुक् विकल्प से होता है। =>द-चन्द्रः (चन्दो, चन्द्रो)। समुद्रः (समुद्दो, समुद्रो)। रुद्रः (रुद्दो, रुद्रो। भद्रः (भहो, भद्रो)। नियम ३६८ (शो शः २।८३) ज्ञ शब्द में न का लुक विकल्प से होता है। ज्ञ शब्द ज और ब के संयोग से बना है। अ का लोप होने के बाद ज शेष रहता है। 17ज-ज्ञानं (जाणं, णाणं)। सर्वज्ञः (सव्वज्जो, सम्वण्णो)। अल्पज्ञः (अप्पज्जो, अप्पण्णू)। दैवज्ञः (दइवज्जो, दइवण्ण) । इंगितज्ञः (इङ्गिअज्जो, इङ्गिअण्णू) । मनोज्ञः (मणोज्ज, मणोण्णं) । अभिज्ञः (अहिज्जो, अहिण्णू )। प्रज्ञा (पज्जा, पण्णा) । आज्ञा (अज्जा, आणा)। संज्ञा (संज्जा, सण्णा)। (नोणः ११२२८ और बादौ ११२२६) से न का ण हुआ है। 47 त--(नियम ३४१ से) धात्री-धत्ती (र का लुक विकल्प से) नियम ३६६ (तीक्ष्णे णः २०८२) तीक्ष्ण शब्द में ण का लुक् विकल्प से होता है। क्षण 7 ख—तीक्ष्णं (तिक्खं, तिह) । (नियम ३४७ से ह का लुक् विकल्प से) मध्याह्नः (मज्झण्णो, मज्झण्हो)। नियम ४०० (रात्री वा २०१८) रात्रि शब्द में संयुक्त का लुक् विकल्प से होता है। त्रि7 इ-रात्रिः (राई, रत्ती)। नियम ४०१ (दशाह २।८५) दशाह शब्द में ह का लुक् होता है। हं 7र-दशाह : (दसारो)। नियम ४०२ (इचो हरिश्चन्द्रे २२८७) हरिश्चन्द्र शब्द में श्च का लुक होता है। श्च7लुक्-हरिश्चन्द्रः (हरिअन्दो)। नियम ४०३ (आदेः श्मश्रु-श्मसाने २२८६) श्मश्रु और श्मसान शब्दों के आदि श् का लुक होता है। श्म>म-एमश्रुः (मासू, मंसु, मस्सु) । श्मसानं (मसाणं)। प्रयोग वाक्य महंकक्कडी मेवाडदेसम्मि वि भवइ । अज्ज मए चिंचाए पाणि पीअं । खज्जूरो अइमहुरो भवइ। ओरंगावायस्स दक्खा रत्ता सुसाऊ य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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