SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संयुक्त व्यञ्जन परिवर्तन ( ३ ) रघ> ढ - दग्धः (दड्ढो) विदग्ध: ( विअड्ढो ) 78 – वृद्धि: ( वुड्ढी) वृद्ध: ( वुड्ढो) ब्ध 7 ढ - स्तब्धः ( ठड्ढो) (नियम ३३० के अनुसार ) नियम ३३५ ( श्रद्धाद्धि-मूर्धोन्ते वा २०४१) श्रद्धा, ऋद्धि, मूर्धन् और अर्ध शब्दों के अंतिम संयुक्त र्ध को ढ आदेश विकल्प से होता है । ( इड्ढी, रिद्धी) मूर्ध (मुण्ढा, र्ष 7 ढ – श्रद्धा (सड्ढा, सद्धा ) ऋद्धि: मुद्धा ) । अर्ध ( अड्ढं, अद्धं ) प्रयोग वाक्य पिप्पलीए सह दुद्धं पाअव्वं । बारहमुहुत्तपेरन्तं पाणिअम्मि दिने लवंगं ठाऊण सलिलेण सह पाअव्वं । अस्सगंधा भक्खणेण अस्ससमो बलो भवइ । पिप्पलीमूलं सइवड्ढयं हवइ । बालो वंसरोअणं खाअइ । कण्हमिरिअं घयेण सह भोयणे बहुलाभअरं भवइ । सुंठीए पओगो अणेगहा होइ । वच्छादणीइ उअरस्स सुद्धी भवइ । गोक्खु रेण अच्छं मुत्तं आयाइ । वासओ कफणासओ भवइ । सोरट्टियाए उवओगो अणेगेसु कज्जेसु भवइ । वणे चुण्णस्स उवओगो होइ । सिअबइरेण दंता दढा भवंति । सारएण उभरस्स किमिणो णस्संति । १६५ धातु प्रयोग किं तुमं पासणाहं आराहसि ? पिआ पुत्तं आरूसइ । सो रुक्खं आरोह | संघ आलंबिऊणं मुणी साहणं करेइ । तुमं परुप्परं किं आलवसि ? fun पुत्ति आलिंगइ । रामो भरहं आलिंगइ । उच्छवे दक्खिणपएसवासिणो हिं आलिपति । तुमं कहं रूवम्मि आलीसि ? अहं तुमं आलक्खामि । मुणी सीतेण न सयं वीअइ । सीया अगणि उज्जालइ । प्राकृत में अनुवाद करो पीपल मंदाग्नि को दूर कर भूख बढाती है । फुनसी पर लौंग लगाने से पीडा कम होती है । अश्वगंध बल देनेवाली औषधि है । पीपरामूल दिमाग की शून्यता को मिटाती है । वंशलोचन हृदय को दृढ करता है। कालीमिर्च भूख को जगाती है । सूंठ अनेक रोगों में उपयोगी है। गिलोय पेट की शुद्धि करता है और वातरोग को दूर करता है । गोखरु से मूत्र का अवरोध मिटता है । अडूसा कफनाशक है और श्वास रोग में काम आता है। फिटकडी से जुकाम ( पडिसायो ) मिटता है । चूना हड्डी को मजबूत ( दढ ) बनाता है । जमालगोटा से मल पतला होकर अनेक वार निकलता है । कत्था गुण से गरम होता है । धातु का प्रयोग करो वह प्रतिदिन शिव की आराधना करता है । मन के प्रतिकूल बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy