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प्राकृत वाक्यरचना बोध
नियम ३०७ ( प्रत्यूषे षश्च हो वा २।१४ ) प्रत्यूष शब्द के त्य को च
होता है ।
स्य 7 च -- प्रत्यूष : ( पच्चूहो, पच्चूओ ) ।
नियम ३०८ ( कृत्ति चत्वरे च : २।१२) कृत्ति और चत्वर के संयुक्त कोच होता है ।
त 7 च - कृत्ति: ( किच्ची ) ।
17 च - चत्वरं (चच्चरं) ।
नियम ३०६ ( त्व-ध्व- द्व-ध्वां च छ ज झाः क्वचित् २।१५ ) त्व को च, थ्व को छ, द्व को ज, ध्व को झ होता है । त्व 7 च - भुक्त्वा (भोच्चा) ज्ञात्वा श्रुत्वा ( सोच्चा) दत्वा ( दच्चा ) |
( णच्चा)
कृत्वा ( किच्चा)
प्रयोग वाक्य सक्करारोगे कारेल्लयं उवओगि अत्थि । सागेसु पडोलो मुल्लवं (मूल्यवान् ) भवइ । जइणा वायंगणं न खाअंति । कक्कडी गुणेण सीयला अस्थि । मूलयं वाउणासणं होइ । आलू बारहमासम्मि चेअ आवणे लभइ । पालक्का सत्थाय लाहअरा अस्थि । दालीए सिंगबेरं केण दिण्णं ? गिम्हकाले पलंडुस्स पओओ अहियो भवइ । लसुणस्स अवलेहो भवइ, सागो वि भवइ । वत्थुलो कत्थ उप्पज्जइ ? अलाउ महुरं हवइ । केलीए सागं अहं रुइणा भक्खामि । पुरिसा तंडुलेण सह चणगसागं भुंजंति । मेवाडदेसवासिणो मकायसागं पण खाअंति । गोराणीए सागो बज्जरीरुट्टिआइ सह पाओ रुइअरो लग्गइ | रत्तंगस्स सागो वि रत्तं वड्ढइ । धातु प्रयोग
बालो पढि विज्जलयं आइ । किसीवलो. (किसान) खेत्तं आउंछइ । सोहणी वित्तं आअक्खर । सुगिहिणो अतिहि आअरइ । सो तुवाणं सिक्ख आइइ । सेट्ठी णियं उज्जाणं आइंचइ । वरिसाए अद्दीभूयो तस्स कायो आयंवइ । तुमं साहुणियमा सम्मं (अच्छी तरह) आयरसि । तिस्स केसकलावो धम्म आयल्लइ | मोहणी हडमाणदेवालये आयमइ ।
प्राकृत में अनुवाद करो
कल मैंने करेला का शाक खाया था । परवल का शाक मेरे पिताजी खाते थे । मेरी बहन ने बैंगन का शाक कभी नहीं खाया। मूली मोसी के गांव में पैदा होती है । आलू जमीन के भीतर फलता है। शाम को नहीं खाती है । तुम्हारी भाभी प्रतिदिन अदरख प्याज और दही मेरे दादा बहुत खाते थे । मेरा मामा खाएगा । मामी ने लहसुन का शाक किसके लिए बनाया है ? वत्थुए का शाक
प्याज कभी नहीं
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बुआ पालक काशाक खाती है। गर्मी में
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