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________________ १२६ प्राकृत वाक्यरचना बोध तलायो सुक्को जाओ । कूवस्स अस्स सलिलं अइमहुरं अस्थि । इंदिराकुल्ला इमम्मि गामम्मि कया आगमिस्सर ? मरुभूमिवासिणो किंचिव रिसपुष्वं तडाअस्स नीरं पिर्विसु । गिम्हकाले ठाणे-ठाणे पवा भवइ । अवज्झरं दट्ठ मज्झ मणो उच्छुओ अस्थि । इमम्मि णयरे पुव्वं फलिहा आसि । मज्झ गिहे कूविया नत्थि । णेण वाउलिया पूरिया । गामस्स बाहि ओग्गलो वहइ । कुंडस्स जलं परिमिअं भवइ | मरुभूमीए णलस्स उवओगो अहियो होइ । गामे गामे जलसंग्रहालयो विज्जइ । बंधस्स उवओगो वि अस्थि, परं कयाइ तेणं हाणी वि भवइ । धातु प्रयोग 1 कंती विमलं अक्कोसइ । सो मज्झ पोत्थयं अक्खिवइ । मोहणी सेट्ठि अच्चीकरेइ । जयंती संमज्जणीए गिहं पमज्जइ । लोआ बालमणि पत्थंति आयरियस सेव । अप्पेण परिस्समेण महेसो थक्कइ । साहू पाणेसुं अणुकंपइ । अहं पमामि तुमं तथा अत्थ आसि । अम्हे आयरियं अच्चीकरेमु । सो महावीरं आलिहइ । प्राकृत में अनुवाद करो समुद्र अपनी सीमा (सीमा) में रहता है इसलिए लोग उस पर विश्वास करते हैं । नदी सब के हित के लिए बहती है । इस गांव में एक छोटा तालाब है । गांव के बाहर जो कुंआ है उसका पानी पीने योग्य है । हमारे शहर के चारों ओर न तो नदी है और न नहर है । तुम्हारे छोटे कुंए का पानी जल्दी सूख जाता है । हमारे क्षेत्र में अब वापी की आवश्यकता नहीं है । पुष्करिणी यहां से कितनी दूर है । प्याऊ की उपयोगिता मरूभूमि में होती है । निर्झर को देखने कौन-कौन जाएंगे ? खाई को लांघना सरल कार्य नहीं है । छोटी खाई में कितना पानी है ? वर्षा के अभाव में मरुभूमि के लोग कुंड का पानी पीते हैं । नल का पानी सीधा जमीन से आता है। बांध टूटने से गांव के गांव (अणेगे गामा ) डूब जाते हैं । टंकी का पानी स्वच्छ किया हुआ होता है । I धातु का प्रयोग करो पर पत्थर फेंका । जो तुमने उसको गाली दी इसलिए वह तुम्हारे पास नहीं आता है । राजस्थान में कितनी नदियां बहती है ? बालक ने वृक्ष खुशामद करता है वह अपना कार्य बना लेता है । उसने ज्ञान किया। क्या तुम पदयात्रा से थकते हो ? गुरु शिष्य साधु अपने स्थान का प्रमार्जन करता है । तुम किसका चित्र बनाते हो ? वस्तुस्थिति का सही पर दया करता है । प्रश्न १. सरल व्यंजनों का प्रारम्भ में क्या परिवर्तन होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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