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बारह
शिक्षार्थी ही नहीं, अध्यापक भी इस व्याकरण को पढकर ज्ञानलाभ कर सकेंगे ऐसी मेरी धारणा है।
___ अन्त में मेरा वक्तव्य यह है कि प्राकृत व्याकरण रचना बोध में उन्होंने बहुत ही महत्त्व का परिचय दिया है । अत्यन्त नीरस व स्वल्प पठित प्राकृत व्याकरण को सुखपाठ्य एवं सरस बनाने के लिए ग्रन्थ संपादक मुनि श्री चंद 'कमल' भी धन्यवाद के पात्र हैं। इस प्रसंग में एक श्लोक उद्धृत करके युवाचार्य श्री एवं उनकी व्याकरण के महत्त्व को व्यक्त करना चाहता हूं। दरापखां ने अपने गंगास्तोत्र में गंगा का महत्त्व कहां निहित है, उसके प्रसंग में कहा था
सुरधुनि मुनिकन्ये तारयेः पुण्यवन्तम्, स तरति निजपुण्यस्तत्र किं ते महत्त्वम् । यदि तु गतिविहीनं तारयेः पापिनं मां ।
तदिह तव महत्त्वं तन्महत्त्वं महत्त्वं ॥
मैं भी कहता हूं दुरूह और कठिन प्राकृत भाषा को सहज व सरल करने में संपादक मुनि श्रीचंद्र 'कमल का महत्त्व प्रकट हुआ है।।
सत्यरंजन बनर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय
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