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प्रमाणों से नयों का भेद
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प्रत्यक्ष हो जाता है । घटत्व केवल सामने रखे हुये वर्तमान घट में नहीं है। देश और काल के द्वारा व्यवहित, अतीत और अनागत और दूरवर्ती घटों में भी है। इसलिए घटत्त्व से संबंधी समस्त घटों का प्रत्यक्ष हो जाता है । पुरोवर्ती और परवर्ती कालों में रहने वाले परिणामों में व्यापक रूप से रहनेवाला द्रव्य ऊर्ध्वता सामान्य है। कपाल, घट आदि मिट्टी के परिणाम है । मिट्टी जिस प्रकार कपाल आदि में अनुगत स्वरूप से रहती है इस प्रकार घट में भी रहती है। कपाल आदि के साथ और घट आदि के साथ मिट्टी का अभेद भी है । अभेद के कारण मिट्टी से भिन्न घट का जिस प्रकार प्रत्यक्ष होता है, इस प्रकार मिट्टी से अभिन्न कपाल आदि का भी प्रत्यक्ष हो जाता है। इस प्रकार तिर्यक सामान्य और उर्ध्वता सामान्य के द्वारा द्रव्य के अभेद को लेकर किसी भी एक धर्मी के त्रैकालिक समस्त धर्मों का प्रत्यक्ष हो सकता है। (नयो. का. ३)
इस विषय में मेरा विचार इस प्रकार है-तिर्यक् सामान्य और ऊर्ध्वता सामान्य का दृष्टान्त समस्त धर्मों के प्रत्यक्ष के लिये उपयोगी नहीं है । घटत्व रूप सामान्य का संबंध अतीत-अनागत और व्यवहित घटों के साथ है । पुरोवर्ती पट आदि के साथ भी नहीं है । वह केवल समस्त घटों का बोध करा सकता है । पर यह बोध प्रत्यक्षात्मक नहीं हो सकता । घटत्व रूप तिर्यक् सामान्य के द्वारा समस्त घटों का ज्ञान मानस ज्ञान है । मन उस में प्रधान कारण है। घटत्व का पुरोवर्ती घट के साथ जो संबंध है वह इंद्रिय के द्वारा प्रत्यक्ष हो सकता है। परंतु अतीत-अनागत और व्यवहित घटों के साथ घटत्व का जो संबंध है वह इन्द्रियों का विषय नहीं हो सकता । अतीत-अनागत और व्यवहिन धर्मी अर्थ परोक्ष हैं, उनके साथ इन्द्रिय का सीधा संबंध नहीं है। साक्षात् संबंध न होने के कारण अतीत आदि अर्थों का प्रत्यक्ष ज्ञान उत्पन्न करने में इन्द्रिय असमर्थ है।
अब ऊर्ध्वता सामान्य को लीजिये-मिट्टी का एक पिंड है उसके अनेक परिणाम है, कुछ पूर्व काल के है-कुछ उत्तर काल के हैं । परिणामी उपादान कारण का उपादेय कार्यरूप परिणामों के साथ भेद और अभेद है । जब मिट्टी के पिंड का प्रत्यक्ष होता है, तो उसके साथ रहनेवाले समस्त परिणामों का भी प्रत्यक्ष होता है। घट के उत्पन्न होने से पहले जितने मिट्टी के परिणाम है उन सब में मिट्टी द्रव्य अनुगत है। जब उन परिणामों के साथ संबंध होता है तब मिट्टी के साथ भी चक्षु और त्वचा का संबंध हो जाता है। मिट्टी का कोई भी परिणाम जब इन्द्रियों के साथ संबंध रखता है, तब वह अतीतअनागत अथवा व्यवहित नहीं होता। इसलिये मिट्टी द्रव्य के प्रत्यक्ष होने पर उसके साथ अभेद रखने वाले परिणामों का प्रत्यक्ष होने में कोई रुकावट नहीं हो सकती। परंतु जब किसी धर्मी का प्रत्यक्ष होता है तब उसमें रहनेवाले अनन्त धर्म धर्मी से भिन्न ही नहीं होते, अभिन्न भी होते है। परन्तु उन अनन्त धर्मों में कुछ धर्म अभिन्न होकर भी व्यवहित देश और अतीत-अनागत काल के साथ संबंध रखने के कारण प्रत्यक्ष नहीं हो सकते । पट का जब प्रत्यक्ष होता है तब पट में जो वृक्ष का भेद रहता है-वह पट से