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कथन भी नयों को प्रमाण रूप सिद्ध करता है । श्रुत को सभी जैन तार्किक प्रमाण मानते हैं । श्रुत के जो भेद हैं - उनमें भी श्रुत प्रमाण भाव का होना आवश्यक है । नैयायिक लोग पृथ्वी - जल आदि को द्रव्य कहते हैं । पृथ्वी जल आदि द्रव्य के अवान्तर भेद हैं । इसलिये पृथ्वी - जल आदि सभी नौ अर्थ द्रव्य हैं। जैन तर्क के अनुसार स्पर्श-रस-गंध और रूप, जिस में हो वह पुद्गल है। पृथ्वी- - जल आदि पुद्गल के भेद हैं । इसलिये उनमें भी पुद्गलभाव आवश्यक है। पृथ्वी-जल आदि में पुद्गलत्व के समान नैगम आदि सात नयों में भी श्रुतत्व आवश्यक है। श्रुत मान लेने पर नयों का प्रमाणमय स्वरूप अपरिहार्य हो जाता है । यदि नैगमादि नय अप्रमाण हों, तो वे प्रमाणभूत श्रुत के भेद नहीं हो सकते ।
STUDIES IN JAINISM
इंद्रियों द्वारा जो ज्ञान पैदा होता है वह प्रत्यक्ष कहा जाता है । व्याप्ति की सहायता से हेतु के द्वारा जब साध्य का ज्ञान होता है, तब वह अनुमान कहा जाता है। इन दोनों प्रकार के ज्ञानों में किसी वस्तु अथवा वस्तु के धर्म के ज्ञान की अपेक्षा नहीं होती । जब किसी वाक्य को सुनकर अर्थ का ज्ञान होता है तब भी सामान्य रूप से शब्द और अर्थ के वाच्य वाचकभाव का ज्ञान हो, तो उस ज्ञानको शब्द से जन्य ज्ञान कहा जाता है । इसको श्रुतज्ञान भी कहते हैं । परंतु जब किसी अन्य धर्मी अथवा धर्म की अपेक्षा से शब्द को सुनकर ज्ञान उत्पन्न हो तो वह केवल श्रुतरूप नहीं होता किन्तु नय हो जाता है और शब्द से जन्य है इसलिये श्रुत कहा जाता है। शब्द के द्वारा जब तक किसी वस्तु का ज्ञान न हो, तबतक ज्ञान कानयात्मक स्वरूप नहीं प्रकट होता । नैगम आदि सात नय हैं। घट शब्द के बोलने पर कुंभार का बनाया हुआ पदार्थ प्रतीत होता है । वह पदार्थ इस प्रकार का होता है जिस की ग्रीवा गोल और कुछ लंबी होती है, जिसका नीचे का भाग चारों ओर से गोल है । उसके द्वारा जल आदि को लाया जा सकता है, जल आदि को उसमें रख्ख्या भी जा सकता है । इस प्रकार के विशेष द्रव्य का अथवा उसकी जाति के समस्त अर्थों का जो सामान्य रूपसे ज्ञान है, वह नैगम नय है । ध्यान रहे - इन्द्रिय से चक्षु से अथवा त्वचा से यदि इस प्रकार के द्रव्य का अर्थात् 'घड़े का ज्ञान हो तो वह ज्ञान तत्त्वार्थ भाष्यकार के लक्षण के अनुसार नय ज्ञान नहीं है । घट कहने पर जब ज्ञान होता है, तभी वह श्रुतज्ञान कहता है । ( त. भा. अ- १ सु-३५ ) देखने से या छूने से घट का ज्ञान हो तो वह श्रुतज्ञान अर्थात् नैगमनय नहीं है । इसी प्रकार घट - शब्द को सुनने पर नाम स्थापना द्रव्य भाव घटों का जो ज्ञान है, वह संग्रह नय है । यहाँ भी यदि शब्द को बिना सुने एक घट का अथवा समस्त घटों का ज्ञान हो तो वह संग्रह नय नहीं है । जिसमें गौणीवृत्ति अधिक हो, सामान्य की उपेक्षा कर के विशेष व्यक्तियों का ज्ञान जिस में अधिक हो, इस प्रकार का बोध व्यवहार नय कहा जाता है । प्रायः व्यवहार नय में विशेष व्यक्तियों को लिया जाता है, सामान्य को नहीं । यही भी प्राय: गौणी वृत्ति का आश्रय है । शब्द में ही गौणी वृत्ति का आश्रय हो सकता है, प्रत्यक्ष,