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STUDIES IN JAINISM
इस युक्ति क्रम के अनुसार नय का प्रमाण से न सर्वथा अभेद है और न सर्वथा भेद । इस कारण नय अंशतःप्रमाण भी है और अप्रमाण भी है।
इन दोनों महान वन्दनीय दिगम्बर और श्वेताम्बर आचार्यों के मत पर विचार करना उचित प्रतीत होता है । समुद्र के अंश को दृष्टान्तरूप में लेकर दोनों आचार्यों ने वस्तु के एक देश को वस्तु और अवस्तु से भिन्न कहा है । परन्तु समुद्र के अंश के साथ वस्तु के अंश की समानता उचित स्वरूप में नहीं प्रतीत होती। समुद्र के अंश को लीजिये-समुद्र एक विशाल जल का अवयवी है । अवयवी के जो अवयव होते हैं, वे अवयवी नहीं कहे जाते । पट अवयवी है - तन्तु उसके अवयव है, वे पट नहीं है । समुद्र के अवयव भी समुद्र नहीं है, यहाँ तक कोई आक्षेप नहीं हो सकता । परन्तु समुद्र के अवयव असमुद्र अर्थात् समुद्र भिन्न नहीं है, यह युक्त नहीं प्रतीत होता । तन्तु जिस प्रकार अपट है अर्थात् पट से भिन्न है, इस प्रकार समुद्र के अंश चाहे सूक्ष्म बिन्दु के रुप में हों अथवा विशाल प्रवाह के रुप में हों, वे समुद से भिन्न है । पटभिन्न अवयव तन्तुओं से जिस प्रकार अवयवी पट की रचना होती है इस प्रकार समुद्रसे भिन्न जलबुन्दों से अथवा प्रवाहों से समुद्रस्वरूप अवयवी की उत्पत्ति होती है। समुद्रत्व धर्म केवल अवयवी समुद्र में रहता है, वह बिंदु अथवा बिंदुओं के समूहरूप प्रवाहों में नहीं रहता। पटत्व केवल पट में है, तन्तुओं में पटत्व नहीं है । तन्तु जिस प्रकार पट को उत्पन्न कर सकते हैं इस प्रकार समुद्र के बिन्दु समुद्र का आरंभ कर सकते हैं। जहाँ भी अवयव-अवयवी भाव है वहाँ वस्तु का स्वरूप इसी प्रकार से होता है ।
परन्तु वस्तु का स्वरूप समुद्र के समान नहीं है। समुद्र एक विशेष अर्थ को कहते है । परन्तु वस्तु किसी एक अर्थ को नहीं कहा जाता । जितने अर्थ हैं, सब वस्तु हैसब में वस्तुत्व धर्म है। वस्तुत्व के जो अंश है वे अंशी के समान वस्तु है। जिस प्रकार अंशी वस्तु है इस प्रकार अंशी के अंश भी वस्तु है । वस्तुत्व जहाँ भी रहेगा उसको वस्तु कहा जायगा । किसी भी अर्थ के अवयवीरूप में जिस प्रकार वस्तुत्व है इस प्रकार अवयवों में भी वस्तुत्व है । अर्थात् वे भी वस्तु है । समुद्रत्व वस्तुत्व के समान व्यापक धर्म नहीं है । वह केवल विशाल अवयवी में रहने वाला है । वह समुद्र की बूंदों में अथवा छोटे-मोटे प्रवाहों में नहीं रहता । समुद्र और वस्तु में यह महान भेद है । इस दशा में वस्तु के अंश का प्रकाशक ज्ञान भी वस्तु का प्रकाशक है । जब दीपक वा सूर्य पट को प्रकाशित करता है तब वस्तु को प्रकाशित करता है । जब तन्तुओं को प्रकाशित करता है तब भी वस्तु का प्रकाशक कहा जाता है। दीपक और सूर्य के समान ज्ञान भी अर्थों का प्रकाशक है । चाहे पट का ज्ञान हो अथवा तन्तुओं का, दोनों दशाओं में वस्तु का ज्ञान कहा जायगा । वस्तु का एक देश भी वस्तु है । एक देशरूप वस्तु का प्रकाशक होने के कारण प्रमाण के समान नयात्मकज्ञान को भी प्रमाण कहना चाहिये । प्रमाणभूत ज्ञान वस्तु के एक देश का प्रकाशक होने पर भी पारमार्थिक वस्तु का प्रकाशक है। नय के