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________________ स्पाबाद-एक अनुचिन्तन 203 और सम्यग्दृष्टि प्राप्त हुए विना सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र की प्राप्ति संभव नहीं है और इन तीनों के विना मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता । _____ एक प्राचार्य ने कहा है जो नयदृष्टि से विहीन हैं उन्हें वस्तु स्वरूप की उपलब्धि संभव नहीं है और वस्तु स्वरूप की उपलब्धि के विना सम्यग्दृष्टि कैसे हो सकता है ? सम्यग्दृष्टि ही समदृष्टि होता है क्योंकि दृष्टि में सम्यक्पना माये विना समता नहीं आ सकती। समता के विना आत्मिक सुख शान्ति प्राप्त नहीं होती। अतः समदर्शी महावीर ने एक ही वस्तु को भिन्न भिन्न दृष्टिकोणों से देखकर और अपने ही दृष्टिकोण को यथार्थ मानकर दूसरों से लड़ने भिड़ने वाले मनुष्यों की अशान्ति के द्वारा उत्पन्न समाज की अशान्ति को दूर करके उनके समन्वय के लिये एक दृष्टि प्रदान की जिसके द्वारा मनुष्य वस्तु के पूर्णरूप को जानकर समदर्शी और समभावी बने। जिनागम में कहा है जो एक को जानता है वह सब को जानता है और जो सब को जानता है वह एक को जानता है । २० स्थाद्वाद परोक्षरूप से सब को जानता है । क्योंकि सब को जाने विना एक को नहीं जा सकता । और इस स्याद्वाद के द्वारा परोक्ष रूप से सर्वदर्शी होने के पश्चात् केवलज्ञान प्राप्त होने पर प्रत्यक्ष रूप से सर्वदर्शी होता है। स्याद्वादश्रुत रूप परोक्ष ज्ञान और केवलज्ञान रूप प्रत्यक्षज्ञान ये दोनों सर्वतत्त्व प्रकाशक है । २१इन में भेद परोक्षता और प्रत्यक्षता का है । प्रथम के विना दूसरे की प्राप्ति असंभव है । अतः स्याद्वाददृष्टि प्रत्यक्ष रूप से जनसमाज में वैचारिक शान्ति प्रदान करती है और परम्परा से पात्मिक शान्ति के द्वारा मुक्तिसुख प्राप्त कराती है। यह उस अहिंसा की ही एक देन है जिसे परमब्रह्म तक कहा गया है । वैचारिक अहिंसा का ही नाम स्याद्वाद है। टिप्पणियाँ १. प्रवचनसार प्र. २, का. ३-४ की टीका, अमतचन्द्राचार्य । २. आप्तमीमांसा ५९का, - अष्ट सहस्त्री २. आप्तमीमांसा आदि तथा अष्टसहस्त्री ४. आप्तमीमांसा १०-११, अष्टसहस्त्री ५. तस्वार्थवातिक ११६ ६. अनेकान्तोऽप्यनेकान्तः प्रमाणनयसाधनः । । अनेकान्तः प्रमाणात्ते तदेकान्तोऽपितानयात् ।। -वृ. स्वयंभू स्त्रोत्र
SR No.002008
Book TitleStudies in Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM P Marathe, Meena A Kelkar, P P Gokhle
PublisherIndian Philosophical Quarterly Publication Puna
Publication Year1984
Total Pages284
LanguageEnglish
ClassificationBook_English, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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