________________
स्याद्वाद-मीमांसा
137
एक शङ्का और उसका समाधान
जैन दर्शन के इस सप्तभंगी के विषय में कुछ विद्वानों की शडका है कि जैन दार्शनिकों ने संजय एवं माध्यमिकों की चतुर्भगी में ही तीन नये भंग मिला कर अपनी सप्तभंगी बनाई है। परन्तु उनकी यह शंका निर्मूल है क्योंकि संजय, जो अनिश्चिततावादी है और माध्यमिक, जो शन्यवादी हैं, दोनों ही वस्तु और वस्तुधर्मों का उच्छेद करते है, जब कि जैन दर्शन वस्तु और वस्तु में स्वभावतः विद्यमान सात-सात धर्मों तथा उन सात-सात धर्मोके अनन्त समुच्चयोंका निश्चित सद्भाव स्वीकार करता है। तीर्थंकरों का उपदेश उन सात-सात धर्मों के प्ररूपणार्थ सप्तभंगात्मक ही होता है । अतः यह क्यों न कहा जाय कि जैन दर्शन की वस्तु की सप्तधर्मात्मकता की मान्यता में से ही संजय ने उसका उच्छंद करने के लिए सहजगम्य चार भंगों को लेकर अपनी चतुर्भगी बनायी है और माध्यमिकों ने भी वस्तुका लोप करने के लिए उसी सप्तभंगी में से सहज व्यवहार्य चार भंगों को ले लिया है। निषेध सद्भावकी स्थिति में ही किया जा सकता है । आचार्य समन्तभद्र और अकलंकदेव ने सभी तीर्थंकरों को, न केवल महावीर को, स्याद्वादी कहा है, जैसा कि निबन्ध के आरम्भ में बताया जा चका है। और स्याद्वाद सप्तभंगनयापेक्ष है। अतः जनदर्शन की सप्तभंगी मौलिक है। और उसके बीज मूल जैनागमों में प्रचरतया उपलब्ध है।
लोकजीवन में स्यावाद का उपयोग
स्याद्वादका उपयोग केवल शास्त्रीय विवेचन में ही नहीं होता, अपितु लोकजीवन में भी उसका अहर्निश उपयोग होता है। हमारा समस्त विचार, समस्त आचार
और सारी बातचीत स्याद्वाद को लिए हुए होती है । जब हम कुछ सोचते, कहते या व्यवहार करते है कि अमुक हमारा मित्र है तो वह हमारे लिए मित्र होता हुआ भी किसी अन्यका वह अमित्र (शत्रु) भी हो सकता है। जब कहते हैं कि कसायी बड़ा हिंसक होता है, तो यह कथन भी सापेक्ष है, क्योंकि वह अपने परिवारका घातक न होने से अहिंसक भी है । दूध रुचिकर और स्वास्थ्यप्रद है, यह कथन भी सापेक्ष है, क्योंकि पेचिस वाले या पित्त-ज्वर के रोगी के लिए वह हानिप्रद है । पानी जीवन है, यह कथन भी सापेक्ष है। जोप्यास से प्राण छोड रहा है उसे पानी मिल जाने पर उसकी जीवन-रक्षा हो जाती है। किन्तु जो किसी नदी या तालाब में डूब कर मर जाता है उसके लिए पानी मारक है - विष है । तात्पर्य यह कि भले ही हम ध्यान न दें, किन्तु स्याद्वाद प्रत्येक व्यवहार में विद्यमान रहता है, इसके बिना लोकव्यवहार चल नहीं सकता । स्यावाद एकान्त आग्रह के त्याग पर बल देता है और सापेक्षता, सह-अस्तित्व, समन्वय एवं समभाव की प्रेरणा प्रदान करता है, सारे विरोधों, झगडों और संघर्षों को दूर करने के लिए यह एक अहिंसक और शांतिपूर्ण अमोघ अस्त्र है।