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________________ स्याद्वाद-मीमांसा 133 है । हम पहले कह आये हैं कि विवक्षित मुख्य और अविवक्षित गौण होता है । ___ इस प्रकार विधि और प्रतिषेध सभी वचन और उनके द्वारा अभिहित एवं सूचित सभी वस्तुएं अनेकान्तरूप हैं । स्याद्वाद सभी वस्तुओं और सभी वचनों में रहनेवाले इसी एकान्त का उद्घाटन करता है और एकान्त रूप से माने जानेवाले वचनों तथा वस्तुओं को पूर्ण सत्य नहीं बतलाता, उन्हें वह सत्य का एक अंश कहता है। इसी तथ्य को अभिव्यक्त करता हुआ स्याद्वाद वक्ता और श्रोता दोनों को पूर्ण सत्यार्थ (अनेकान्त) के ग्रहण की ओर ले जाता है । स्याद्राद का यही प्रयोजन है। एक दृष्टान्त स्थाद्वाद को समझने के लिए एक दृष्टान्त बहुप्रसिद्ध है। १ । एक स्थानपर छह अन्धे एकत्रित हो गये और उन्होंने उधर से आ रहे एक हाथी को पकड़ लिया। किसीने पैर पकड़े, किसीने पूँछ पकड़ी, किसीने दाँत, किसीने छाती, किसी ने सूंढ और किसीने कान। और अपने-अपने स्पर्शानुभव से हाथी का बखान करने लगे। जिसने पैर पकड़े थे, उसने हाथी को खम्भा जैसा बताया । जिसने पूँछपकड़ी, उसने उसे रस्सी जैसा कहा । जिसने दाँत पकड़े उसने उस खूटी जैसा प्रकट किया। जिसने छाती पकड़ी उसने हाथी को दीवाल जैसा बतलाया । जिसने सूंढ पकड़ी उसने उसे मुसल जैसा कहा । और जिसने कान पकड़े थे वह उसे सूप जैसा बताने लगा । और इस तरह वे आपस में झगड़ने लगे। इसी बीच एक नेत्रवान् वहाँ आ पहुंचा। उसने उनके झगड़े को सुना और सुनकर बोला भाइयो, तुम सब ठीक कहते हो, किन्तु सबको मिलाने पर ही हाथी का स्वरूप बनेगा। तुम अपने पक्ष में सही हो, तुम्हें दूसरे के पक्ष का निषेध नहीं करना चाहिए । अन्यथा हाथी का स्वरूप अपूर्ण रहेगा। यही स्थिति वस्तु के स्वरूप में है । वस्तु अनेकान्त है - उसमें अनन्त एकान्त भरे पड़े हैं । यदि एक एक एकान्त को लेकर समग्र वस्तु की व्यवस्था करने का आग्रह करें तो पूर्ण सत्य की व्यवस्था नहीं हो सकेगी। वास्तव में जितने एकान्त आग्रह हैं वे अन्य पक्ष का निराकरण करते हैं और इसलिए वे पक्षाभिभूत है । और स्याद्वाद (अनेकान्तवाद) में सभी पक्ष अपने अपने स्थान पर मैत्री भाव से समाहित हैं । वह प्रत्येक पक्ष का सम्मान करता है, वह किसीका तिरस्कार नहीं करता । यही पक्षातिक्रान्त एवं समन्वयवादी दृष्टि स्याद्वाद दूसरा दृष्टान्त ... एक राजा था । उसके पहले-पहल राजकुमारी का जन्म हुआ। उसके कुछ बड़ी होने पर उसे खेलने के लिए राजा ने सोने का एक छोटा घड़ा बनवा दिया। राजकुमारी उस घड़े से रोज खलती और प्रसन्न रहती थी। कुछ वर्षों बाद राजा के राजकुमार पैदा हुआ। बड़ी खुशी मनायी गयी। राजकुमार जब कुछ बड़ा हुआ तो राजा ने राज
SR No.002008
Book TitleStudies in Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM P Marathe, Meena A Kelkar, P P Gokhle
PublisherIndian Philosophical Quarterly Publication Puna
Publication Year1984
Total Pages284
LanguageEnglish
ClassificationBook_English, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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