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________________ ७९८ भगवती आराधना बंधतो मुच्चंतो एवं कम्मं पुणो पुणो जीवो। सुहकामो बहुदुक्खं संसारमणादियं भमइ ।।१७९१।। 'बंधंतो मुच्चंतो' बन्धन् मुश्चन् । 'एवं कम्मं पुणो पुणो जीवों' कर्म पुनः पुनर्जीवः दत्तफलानि मुञ्चति, कर्मफलानुभवकालोपजातरागद्वषादिपरिणामैरभिनवानि कर्माणि बध्नाति । 'सुहकामो' सुखाभिलाषवान् । 'बहुदुक्लं' विचित्रदुःखं । 'संसारमणादिगं भमदि' अनादिकं संसारं भ्रमति । संसारचिन्ता ॥१७९१॥ लोकानप्रेक्षा निरूप्यते । नामस्थापनाद्रव्यादिविकल्पेन यद्यप्यनेकप्रकारो लोकस्तथापीह लोकशब्देन जीवद्रव्यलोक एवोच्यते । कथं ? सूत्रेण जीवधर्मप्रवृत्तिक्रमनिरूपणात् आहिंडयपुरिसस्स व इमस्स णीया तहि तहिं होति । सव्वे वि इमो पत्तो संबंधे सव्वजीवहिं ।।१७९२।। 'आहिंडगपुरिसस्स व' देशान्तरं भ्रमतः पुंस इव । । 'इमस्स गोगा तहि तहि होति' अस्य बंधवस्तत्र तत्र भवन्ति । 'सम्वेवि इमो पत्तो' सर्वानयं प्राप्तः । 'संबंध' संबन्धान् । 'सव्वजोहि' सर्वजीवः सह ।।१७९२॥ माया वि होइ भज्जा भज्जा मायत्तणं पुणमुवेदि । इय संसारे सव्वे परियट्टते हु संबंधा ॥१७९३।। 'मादा य होवि भज्जा' माता भार्या भवति । भार्या मातृतां पुनरुपैति । एवं संसारे सर्वे सम्बन्धाः परिवर्तन्ते इति गाथार्थः ॥१७९३॥ जणणी वसंततिलया भगिणी कमला य आसि भज्जाओ। घणदेवस्स य एक्कम्मि भवे संसारवासम्मि ॥१७९४॥ 'जणणी वसंततिलया' धनदेवस्य जननी वसंततिलका। कमला भगिनी । ते उभे भायें जाते गा०-इस प्रकार जीव जो कर्म फल दे लेते हैं उन्हें छोड़ देता है और कर्मोका फल भोगते समय होनेवाले राग-द्वेष रूप परिणामोंसे नवीन कर्मोंका बन्ध करता है। सुखकी अभिलाषा रखकर बहुत दुःखोंसे भरे अनादि संसारमें भ्रमण करता है ॥१७९१॥ संसार अनुप्रेक्षाका कथन समाप्त हुआ। अब लोकानुप्रेक्षाका कथन करते हैं। यद्यपि नाम, स्थापना, द्रव्य आदिके भेदसे लोकके अनेक भेद हैं । तथापि यहाँ लोक शब्दसे जीव द्रव्यलोक ही कहा है क्योंकि गाथामें जीवके प्रवृत्ति क्रमका कथन किया है गा०-जैसे देशान्तरमें भ्रमण करनेवाले पुरुषको सर्वत्र इष्ट-मित्र मिलते हैं उसी प्रकार इस जीवके भी जहाँ-जहाँ यह जन्म लेता है वहीं-वहीं बन्धु-बान्धव होते हैं। इस तरह इसने सब जीवोंके साथ सब सम्बन्ध प्राप्त किये हैं ॥१७९२।। गा०-जो इस जन्म माता है वही दूसरे जन्ममें पत्नी होती है और पत्नी होकर पुनः माता बन जाती है । इस प्रकार संसारमें सब सम्बन्ध परिवर्तनशील हैं ॥१७९३।। गा०-टो०-दूसरे भवोंमें सम्बन्ध बदलनेकी तो बात ही क्या है। किन्तु धनदेवकी माता वसन्ततिलका और बहन कमला, ये दोनों उसो भवमें धनदेवकी पत्नी हुईं। कहा भी है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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