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________________ विजयोदया टीका ७४१ अच्छिणिमिसेणमेत्तो आहारसुहस्स सो हवइ कालो। गिद्धीए गिलइ वेगं गिद्धीए विणा ण होइ सुहं ॥१६५७॥ 'अच्छिणिमेसणमित्तो' अक्षिनिमेषणमात्रः कालः । आहाररससेवाजनितसुखस्य । गृद्धया वेगेन . निगिरति । यतो गृद्धया च विना नास्तीन्द्रियसुखं ॥१६५७॥ दुक्ख गिद्धीपत्थस्साहटेंतस्स होइ बहुगं च । चिरमाहट्टियदुग्गयचेडस्स व अण्णगिद्धीए ॥१६५८॥ 'दुक्खं गिद्धीपत्थस्स' दुःखं महद्भवति लम्पटतया ग्रस्तस्याभिलषतः । 'चिरमाहट्टियदुग्गदचेडस्स व अण्णगिद्धीए' अन्नगृद्धया चिरं व्याकुलस्य दरिद्रसंबंधिनो दासेरस्येव ॥१६५८॥ को णाम अप्पसुक्खस्स कारणं बहुसुहस्स चुक्केज्ज । चुक्कइ हु संकिलिसेण मुणी सग्गापवग्गाणं ॥१६५९॥ 'को णाम अप्पसुक्खस्स कारणं' को नामाल्पसुखनिमित्तं महतो निर्वृतिसुखात्प्रच्यवते च मुनिः संक्लेशेन स्वर्गापवर्गसुखाभ्याम् ।।१६५९॥ अहुलित्तं असिधारं लेहइ भंजइ य सो सविसमण्णं । जो मरणदेसयाले पच्छेज्ज अकप्पियाहारं ॥१६६०॥ 'महुलितं मधुना लिप्तामसिधारां आस्वादयति । सविषमशनं भुङ्क्ते यो मरणदेशकाले अयोग्याहारप्रार्थनां करोति ॥१६६०॥ बादमें । अर्थात् जब आहार जीभपर नहीं आया और जब आकर गलेमें उतरा तब स्वादकी अनुभूति नहीं होती ॥१६५६॥ गा०-इस प्रकार आहारसे होनेवाले सुखका काल एक बार पलकें बन्द करके खोलने में जितना समय लगता है उतना ही है अर्थात् क्षणमात्र है। आहारकी गृद्धि होनेसे आहार वेगसे निगला जाता है और गृद्धिके बिना सुख नहीं होता ।।१६५७।। गा०-जो आहारविषयक लम्पटताके साथ आहारकी आकांक्षा करता है उसे बहुत दुःख उठाना पड़ता है। जैसे अन्नकी गृद्धिसे चिरकालसे व्याकुल दरिद्र दासको कष्ट होता है वैसा ही कष्ट आहारकी लम्पटतावालेको होता है ।।१६५८।। गा०-टी०-कौन बुद्धिमान पुरुष थोड़ेसे सुखके लिये बहुत सुखसे वंचित होना चाहेगा। अर्थात् इस अन्तिम अवस्थामें आहारमें आसक्त होनेसे तुम बहुत सुखसे वंचित हो जाओगे। मुनि संक्लेश परिणाम करनेसे स्वर्ग और मोक्षके सुखसे वंचित हो जाता है-उसे स्वर्ग या मोक्षकी प्राप्ति नहीं होती ॥१६५९॥ ___ गा०-टी०--जो क्षपक मरते समय अयोग्य आहारकी प्रार्थना करता है वह मधुसे लिप्त तलवारको धारको चाटता है और विष सहित अन्नको खाता है। अर्थात् जैसे मधुसे लिप्त तलवारकी धारको चाटनेसे तत्काल सुख होता है किन्तु जीभ कट जाती है वैसे ही मरते समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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