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विजयोदया टीका
७१५ कुट्टाकुट्टि चुण्णाचुण्णि मुग्गरमुसुंढिहत्थेहिं ।
जं वि सखंडाखंडिं कओ तुमं जणसमूहेण ॥१५६६।। _ 'कुट्टाकुटिं बहुंशो' यत्कुट्टितश्चूर्णितः मुद्गरमुसंडिहस्तैः, यच्च जनसमूहेन भवान् असकृत्खंडितस्तदन्तःकरणे कुरु ॥१५६६॥
अनुवृत्तिक्रिया भाषा सन्नतिः सुखशीलता। त्रपा कृपा दमो दानं प्रसादो मार्दवं क्षमा ॥१॥ इत्येवमाद्याः सुगुणाः प्रशस्ता ये शरीरिणां । तेषु ते दुर्लभा नित्यं कान्तारेष्विव मानुषाः ॥२॥ शत्रुमित्रमुदासीन इत्यन्यत्र त्रिधा जनः । शत्रुरेव हि सर्वोऽत्र जनः सर्वस्य नारकः ॥३॥ कम्पनैः कणयैश्चक्रेर्नाराचैः क्रकचैनखैः । गदाभिर्मुशलः शूलैः प्राशेः पाषाणपट्टिशैः ॥४॥ मुष्टिभिर्यष्टिभिर्लोष्टः शङ्कुभिः शक्तिभिः शरैः। असिभिः क्षुरिकाभिश्च कुन्तैर्दण्डैः सतोमरैः ॥५॥ तथा प्रकारैरन्यश्च निशितै कसंस्थितैः । भस्वभावात्स्वयं जातक्रियरपि चायुधः ॥६॥ नारकास्तत्र तेऽन्योन्यं रोषवेगेन पूरिताः । पूर्ववैराण्यनुस्मृत्य वैभंगज्ञानसंभवात् ॥७॥ घ्नंति छिदति भिदंति खादंति च तदंति च । विध्यंति चामथ्नति प्रहरन्ति हरन्ति च ॥८॥ श्वशृंगालवृकव्याघ्रगृध्ररूपाणि चापरे । विकृत्य विदयं पापा बाधतेऽत्र परस्परं ॥९॥
गा०-टी०-अनेक बार हाथमें मुद्गर लेकर तुम्हें कूटा गया, मूसलोंसे जनसमूहने तुम्हें चूर्ण कर डाला । उसका मनमें विचार करो।
अनुकूल क्रिया, भाषा, सज्जनता, नम्रता, सुखशीलता, लज्जा, दया, इन्द्रिय दमन, दान, प्रसन्नता, मार्दव, क्षमा आदि जो प्रशस्त सुगुण प्राणियोंमें होते हैं वे गुण नरकमें वैसे ही दुर्लभ हैं जैसे घोर वनमें मनुष्यका मिलना दुर्लभ है। अन्यत्र शत्रु, मित्र और उदासीन तीन प्रकारके लोग होते हैं। किन्तु नारकी सब सबके शत्रु ही होते हैं। नरकमें नारकी अपने विभंगज्ञानसे पूर्व जन्मके वैरोंको स्मरण करके और क्रोधसे भरकर वक्र, बाण, करोंत, नख, गदा, मूसल, शूल, भाला, पाषाणसे निर्मित अस्त्र विशेष, मुट्ठी, लकड़ी, लोष्ट, शङ्क, शक्ति, तलवार, छुरी, भाला, दण्डा, गुर्ज तथा इसी प्रकारके अन्य तीक्ष्ण अस्त्र शस्त्रोंसे जो वहाँकी पृथिवीके स्वभावसे स्वयं उत्पन्न हो जाते हैं तथा विक्रियासे निर्मित आयुधसे परस्परमें मारते हैं, छेदते भेदते हैं, खाते हैं कोंचते हैं, प्रहार करते हैं, बींधते हैं। अन्य नारकी कुत्ता, सियार, भेड़िया, व्याघ्र, गृद्ध
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