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________________ ६०० भगवतो आराधना कृतासकृत्प्रतिलेखन, अप्रतिसारितप्रतिमार्गायायिसंघट्टनं दुष्टधेनुबलीवईसारमेयादिपरिहृतिचतुरं, परिहृतबुसतुषमषोभस्मागोमयतणनिचयज'लोपलफलकं, दूरीकृतचोरीकलह, अनारूढसंक्रमं निरूपयतो यतेरीर्यासमितिः ॥११८५।। भाषासमितिनिरूपणार्थोत्तरगाथा सच्चं अमच्चमोसं अलियादीदोसवज्जमणवज्जं । वदमाणस्सणुवीची भासासमिदी हवदि सुद्धा ।।११८६।। चतुर्विधा वाक्-सत्या, मृषा, सत्यसहिता मृषा, असत्यमषा चेति । सतां हिता सत्या । न सत्या न च मुषा या सा असच्चमोसा । द्विप्रकारां वाचमित्थंभतां । 'अलिगादिदोसवज्ज' व्यलीकता अर्थाभावः, पारुष्यं, पैशुन्यमित्यादिदोषरहितं । 'अणवज्ज' पापास्रवो न भवति इत्यनवद्यं । 'बदमाणस्स' व्याहरतः । 'अणुवीचि' सूत्रानुसारेण 'भासासमिदी सुद्धा हवदि' भाषासमितिः शुद्धा भवति ॥११८६।। सत्यवचनभेदं निरूपयति जणवदसंमदिठवणा णामे रुवे पडुच्चववहारे । संभावणववहारे भावेणोपम्मसच्चेण ।।११८७॥ 'जणववसंमदि' नानाजनपदप्रसिद्धा सुसंकेतानुविधायिनी वाणी जनपदसत्यं । गच्छति इति गौः, गर्ज रहित गमन करना, तरुण तृण पत्रोंसे एक हाथ दूर रहते हुए गमन करना, पशु पक्षी और मृगोंको भयभीत न करते हुए गमन करना, विरुद्ध योनिवाले जीवोंके मध्यसे जानेपर उनको होनेवाली बाधाको दूर करनेके लिए पीछीसे अपने शरीरकी बारबार प्रतिलेखना करते हुए गमन करना, सामनेसे आते हुए मनुष्योंसे न टकराते हुए गमन करना, दुष्ट गाय, दुष्ट बैल, कुत्ता आदिसे चतुरतापूर्वक बचते हुए गमन करना, भुस, तुष, मसी, गीला गोबर, तृणसमूह, जल, पाषाण और लकड़ीके तख्तसे बचकर गमन करना, चोरी और कलहसे दूर रहना और पुलपर न चढ़ना । ये सव करते हुए गमन करना ईर्यासमिति है ।।११८५।। आगे भाषासमितिका कथन करते हैं गा०-वचनके चार प्रकार हैं-सत्य, असत्य, सत्यसहित असत्य और असत्यमृषा । सज्जनोंके हितकारी वचनको सत्य कहते हैं। जो वचन न सत्य होता है और न असत्य उसे असत्यमृषा कहते हैं। इस प्रकार सत्य और असत्यमृषा वचनको बोलना तथा असत्य, कठोरता, चुगली आदि दोषोंसे रहित और अनवद्य अर्थात् जिससे पापका आस्रव न हो ऐसा वचन सूत्रानुसार बोलनेवालेके शुद्ध भाषासमिति होती है ॥११८६।। सत्यवचनके भेद कहते हैं गा०-जनपद सत्य, सम्मति सत्य, स्थापना सत्य, नामसत्य, रूपसत्य, प्रतीत्यसत्य, सम्भावना सत्य, व्यवहार सत्य, भाव सत्य और उपमा सत्य इस प्रकार सत्यवचनके दस भेद हैं । टो०-विभिन्न जनपदोंमें जो उस उस जनपदके संकेतके अनुसार प्रचलित वाणी है वह १. यदलो-अ० २. अनूढ़-अ० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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