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________________ भगवती आराधना आउधवासस्स उरं देइ रणमुहम्मि गंथलोभादो । मगरादिभीमसावदबहुलं अदिगच्छदि समुद्धं ॥ ११३०॥ 'आउथवासस्स उरं देव' आयुधवर्षस्य उरो ददाति । 'रणमुहे' रणमुखे । 'गंथलोहादो' ग्रन्थलोभात् मकरादिभीमं श्वापदबहुलं प्रविशति समुद्रं ॥ ११३० ॥ ५७८ जदि सो तत्थ मरिज्जो गंथो भोगा य कस्स ते होज्ज । महिला विहिंसणिज्जो लुसिददेहो व सो होज्ज ॥ ११३१॥ 'जदि सो तत्थ मरिज्जो' यद्यसौ रणमुखे मृतिमियात् । ग्रन्था भोगाश्च ते तावत्कस्य भवेयुः । वनिताभिर्निन्द्यः विनष्टकरचरणाद्यवयवो भवेद्यद्यपि न मृतः ।।११३१ ॥ गणिमत्तमदीदिय गुहाओ भीमाओ तह य अडवीओ । गंथणिमित्तं कम्मं कुणइ अकादव्वयंपि णरो ॥ ११३२ ।। 'गंथनिमित्तमदीदिय' ग्रन्थनिमित्तं प्रविशति गुहां तथा भीमाश्चाटवीः । ग्रन्थनिमित्तं कर्म अकर्तव्यमपि करोति नरः ॥ ११३२ ॥ सूरो तिक्खो मुक्खो वि होइ वसिओ जणस्स सघणस्स । arita ass गंथणिमित्तं बहुयं पि अवमाणं ।। ११३३ ॥ 'सूरो तिक्खो मुक्खो वि' शूरस्तीक्ष्णो मूर्खश्च वशवर्ती भवति जनस्य सधनस्य । अभिमानवानपि सहते ग्रन्थनिमित्तं महान्तं अपि परिभवं ॥ ११३३॥ गंथणिमित्तं घोरं परितावं पाविदूण कंपिल्ले । लल्लक्कं संपत्तो णिरयं पिण्णागगंधो खु ।। ११३४|| 'अत्यणिमित्तं' वसुनिमित्तं महत् दुःखं प्राप्य । 'कंपिल्ये' कम्पिल्लनगरे । 'लल्लकं' लल्लकनामधेयं संप्राप्तो नरकं पिण्याकगन्धसंज्ञः ॥ ११३४॥ बकरी, भेड़, हाथी, घोड़े पालता है । लेन-देन करता है । शिल्पकर्म करता है ॥ ११२९ ॥ गा० - परिग्रह के लोभसे युद्धभूमिमें अपनी छातीपर आयुधोंकी वर्षा सहता है । मगरमच्छ आदि भयंकर जन्तुओं से भरे समुद्रमें प्रवेश करता है ||११३०॥ गा० - यदि कदाचित् धनका लोभी रणमें मर जावे तो परिग्रह और भोग कौन करेगा । यदि न भी मरे और हाथ पैर कट जाये तो भी स्त्रियोंके द्वारा तिरस्कृत होगा ॥ ११३१ ॥ गा० - परिग्रहके निमित्त भयानक गुफा में प्रवेश करता है, भयानक जंगलमें जाता है । इस प्रकार मनुष्य परिग्रहके लिए नहीं करने योग्य काम भी करता है ||११३२ || गा० - परिग्रहके निमित्त शूरवीर, असहनशील और मूर्ख पुरुष भी धनी मनुष्यके वश में होता है और अभिमानी भी बहुत अपमान सहता है ।११३३|| गा०- - परिग्रहके निमित्तसे कंपिला नगरीमें पिण्याकगन्ध नामका लोभी पुरुष घोर दुःख सहकर मरकर लल्लक नामक नरक बिलमें उत्पन्न हुआ ||११३४ || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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