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________________ ५७७ विजयोदया टीका दओ बंभणि वग्यो लोओ हत्थी य तह य रीयसुयं । परियणरो वि य राया सुवण्णरयणस्स' अक्खाणं ॥११२६।। वण्णरणउलो विज्जो वसहो तोवस तहेव रचूदवणं ।। रुक्खसिवण्णीडुडुह मेदज्ज मुणिस्स अक्खाणं ।।११२६।। सीदुण्हादववादं वरिसं तहा छुहासमं पंथं । दुस्सेज्जं दुज्झत्त सहइ वहइ भारमवि गुरुयं ।।११२७।। गायदि णच्चइ धावइ कसइ क्वइ लवदि तह मलेइ णरो। तुण्णदि वणइ याचइ कुलम्मि जादो वि गंथत्थी ॥११२८॥ 'गायदि' गायति, नृत्यति, धावति, कृषति, वपति, कणिशच्छेदं करोति, मर्दनं करोति, सीव्यति, वयति, याचते कुले जातोऽपि परिग्रहार्थं ॥११२८॥ सेवइ णियादि रक्खइ गोमहिसिमजावियं हयं हथि । ववहरदि कुणदि सिप्पं अहो य रत्ती य गयणिदो ॥११२९।। गा०-टी०-ये कथाएँ इस प्रकार हैं। पहले श्रावक जिनदत्तने दूत और बन्दरकी कथा कही। फिर साधुने ब्राह्मणी और नेवलेकी कथा कही। फिर श्रावकने व्याघ्र और वैद्यकी कथा कही। तब साधुने बैल और लोगोंकी कही। फिर श्रावकने हाथी और तापसकी कथा कही । तब साधुने राजा और आम्रवनको कथा कही। फिर श्रावकने पार्थक मनुष्य और शिवनिवृक्षकी कथा कही । तव साधुने राजा और सर्पकी कथा कही। तब श्रावकने एक चोर और सेठकी कथा कही । अन्तमें साधुने मणिपालक और मेतार्यमुनिकी कथा कही ।।११२५-११२६।। विशेषार्थ-इन दोनों गाथाओंमें उस श्रावक और साधुके मध्यमें हुई कथाओंके पात्रोंके नाम दिये हैं। ये दस कथाएँ बृहत्कथाकोशमें जिनदत्त कथानक १०२ के अवान्तरमें दी गई हैं। दसवीं कथाके अन्तमें धन चुरानेवाला पुत्र प्रबुद्ध होकर पिताको धन अर्पित करके उन साधुके समीप दीक्षा ग्रहण करता है। इन दोनों गाथाओंपर न तो अपराजित सूरिकी टीका है। न आशाधरको और न अमितगतिके संस्कृत पद्य ही हैं ॥११२५-११२६।।। गा०-परिग्रहका इच्छुक मनुष्य गर्मी, सर्दी, घाम, वायु, वर्षा, प्यास, भूख, श्रम, मार्ग चलना आदिका दुस्सह कष्ट सहन करता है और अपनी शक्तिसे भी अधिक भार ढोता है ॥११२७॥ __ गा०–तथा श्रेष्ठकुलमें जन्म लेकर भी धनके लिए गाता है, नाचता है, दौड़ता है, खेती करता है, बीज बोता है, धान्य काटता है, मालिश करता है, कपड़े सीता है, कपड़े बुनता है, और भीख माँगता है ।।११२८॥ गा०-रात दिन न सोकर सेवा करता है, घर छोड़कर देशान्तर जाता है । गाय, भैंस, १. णरथस्स-अ० । णयारस्स-आ० मु० । २. रूववणं-अ० ज० । ३. एतां टीकाकारो नेच्छति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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