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________________ विजयोदया टीका जीता । 'सा चेव होदि संकुडिदंगी' सैव भवति संकुटिततनुः । 'विरसा' कामरसरहिता । 'परिजण्णा' परितो जीर्णा जरत्कुटीव ॥१०४९।। जा सव्वसुंदरंगी सविलासा पढमजोव्वणे कंता । ‘सा चेव मदा संती होदि हु विरसा य बीभच्छा ।।१०५०॥ 'जा सव्वसुंदरंगी' यस्याः सर्वाणि अङ्गानि सुन्दराणि । 'सविलासा' विलाससहिता । 'पढमजोवणा' प्रथमयौवना । 'कता' कान्ता। 'सा चेव मदा संती' सैव मृता सती । 'होहि हु विरसा' भवति विरसा । 'बीभच्छा' जुगुप्सनीया ॥१०५०॥ शरीरसम्पदोऽध्रुवता व्याख्याता गाथाद्वयेन । दम्पत्योः संयोगस्याध्रुवतां व्याचष्टे मरदि सयं वा पुव्वं सा वा पुन्वं मरिज्ज से कंता । जीवंतस्स व सा जीवंती हरिज्ज बलिएहिं ।।१०५१।। 'मरदि सयं वा पुव्वं' म्रियते स्वयं वा पूर्व पुमान् । 'सा वा पूर्व म्रियेत' । 'से' तस्य पुनः कान्ता । 'जीवंतस्स' जीवतो वा, सा जीवन्ती ह्रियते 'बलिहि' बलिभिरपरः । इत्थं संयोगस्य बहुधाऽनित्यता ॥१०५१॥ सा वा हवे विरत्ता महिला अण्णेण सह पलाएज्ज । अपलायंती व तगी करिज्ज से वेमणस्साणि ॥१०५२॥ 'सा वा होज्ज विरत्ता' सा भवेद्विरक्ता पुरुष तथापि तयोः संगतिः । 'महिला अण्णेण वा सह पलाएज्ज' सा विरक्ता युवतिरन्येन वा सह पलायनं कुर्यात । 'अपलायन्ती' अपलायमाना था। 'तगी' सा। 'करेज्ज से वेमणस्साणि' कुर्यात्तस्य चेतोदःखानि ॥१०५२।। शरीरस्याध्रुवतामाचष्टेअंगवाली, शृङ्गार हास्य आदि काम रससे रहित अत्यन्त जीर्ण झोपड़ीकी तरह दिखाई देती है ॥१०४९।। गा०-जो स्त्री यौवनके प्रारम्भमें सर्वांगसुन्दर तथा विलाससे पूर्ण थी वही मरनेपर विरस और ग्लानियोग्य दिखाई देती है ॥१०५०॥ इस प्रकार दो गाथाओंसे शरीरकी सुन्दरताको अस्थायी कहा । अब पति-पत्नीके संयोगको अस्थायी कहते हैं गाल-पहले पति मर जाता है अथवा पहले पत्नी मर जाती है। अथवा पतिके जीवित रहते हुए अन्य बलवान् पुरुष उसकी जीवित पत्नीको हरकर ले जाते हैं। इस प्रकार पति-पत्नीसंयोग अनित्य होता है ॥१०५१।। ___गा०-अथवा पत्नी पतिसे विरक्त हो जाती है और विरक्त होकर वह दूसरेके साथ भाग जाती है। न भी भागे तो पतिके चित्तको दुःख देनेवाले कार्य करती है ।।१०५२॥ अब शरीरकी अस्थिरता बतलाते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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