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________________ ५५४ भगवती आराधना छगलं मुत्तं दुद्धं गोणीए रोयणा य गोणस्स । सुचिया दिट्ठा ण य अस्थि किंचि सुचि मणुयदेहे ॥१०४६॥ असुइ ॥१०४६॥ व्याधि इत्यद्वयाचष्टे प्रबन्धेनोत्तरेण वाइयपित्तियसिंभियरोगा तण्हा छुहा समादी य । णिच्चं तवंति देहं अद्दहिदजलं व जह अग्गी ॥१०४७।। 'वाइयपित्तियसिभियरोगा' दोषत्रयप्रभवा व्याधयः । तृष्णाक्षुधाश्रम इत्यादयश्च । देहं नित्यं तपन्ति ज्वलितोऽग्निर्जलमिव चुल्ल्युपरिस्थितभाजनगतं ॥१०४७॥ जदिदा रोगा एक्कम्मि चेव अच्छिम्मि होति छण्णउदी। सव्वम्मि' दाई देहे होदव्वं कदिहिं रोगेहिं ।।१०४८॥ 'जदिदा रोगा एकम्मि चेव अच्छिम्मि होंति छण्णवदी' यदि तावद्रोगा एकस्मिन्नेव नेत्रे षण्णवतिसंख्या भवन्ति । 'सवम्मि दाई देहे' समस्ते इदानीं शरीरे । 'होदव्वं कदिहिं रोहिं' कतिभिर्व्याधिभिर्भवितव्यम् ॥वाधिगदं॥१०४८।। अध्रुवतामुत्तरया गाथयाचष्टे पीणत्थर्णिदुवदणा जा पुव्वं णयणदइदिया आसे । सा चेव होदि संकुडिदंगी विरसा य परिजुण्णा ॥१०४९।। 'पीणणिदुवदणा' पीनस्तनभागासम्पूर्णचन्द्रानना । 'जा पुव्वं' या पूर्व । ‘णयणदयिदिया' नयनबल्लभा गा०-बकरेका मूत्र, गायका दूध, बैलका गोरचन लोकमें पवित्र माने गये हैं परन्तु मनुष्यके शरीरमें किञ्चित् भी शुचिता नहीं है ॥१०४६।। इस तरह शरीरकी अशुचिताका कथन क्रिया, आगे व्याधिका कथन करते हैं गा०-जैसे आग चूल्हेके ऊपर स्थित पात्रके जलको तपाती है वैसे ही वात पित्त और कफसे उत्पन्न हुए रोग तथा भूख प्यास श्रम आदि शरीरको सदा तपाते हैं दुःख देते हैं ॥१०४७।। गा०-यदि एक नेत्रमें ही छियानबे रोग होते हैं तो समस्त शरीरमें कितने रोग होंगे ॥१०४८॥ आगेकी गाथासे अध्रुवत्वका कथन करते हैं गा०-इस शरीरका स्वरूप तो देखो। जो स्त्री पूर्व यौवन अवस्थामें पुष्टस्तनवाली, सम्पूर्ण चन्द्रमाके समान मुखवाली और नेत्रोंको प्रिय थी वही स्त्री वृद्धावस्थामें संकुचित १. म्मि चेव दे-अ०। २. इस गाथाके पश्चात् आशाधरने नीचे लिखी गाथा दी है पंचेव य कोडीओ भवंति तह अट्टसट्टिलक्खाई। णवणवरिं च सहस्सा पंचसया होंति चुलसीदी ॥ पांच करोड़ अड़सठ लाख, निन्यानबे हजार पाँच सौ चौरासी रोग शरीरमें होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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