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________________ ५० ३८४ w W ४८ ३४२ विषय-सूची विषय विषय जो ज्ञानी नहीं, उसका आश्रय लेने में दोष ३३७ ऐसा गुणयुक्त आचार्य निर्यापक होता है ३७९ ज्ञानी आचार्य के लाभ ३३९ ऐसा आचार्य खोजकर ही क्षपक उसके द्रव्य संसारका स्वरूप ३४१ पास सल्लेखनाके लिये जाता है। ३८० क्षेत्र संसारका स्वरूप :४२ उवसंपा नामक समाचारका क्रम ३८ काल संसारका स्वरूप ३४२ क्षपककी परीक्षा ३८३ भव संसारका स्वरूप ३४२ परीक्षा न करने में दोष भाव संसारका स्वरूप परीक्षा के पश्चात् परिचर्या करनेवाले मनुष्य पर्यायकी दुर्लभता ३४३ यतियोंसे पूछना य ३८५ देशको दुर्लभता ३४४ एक आचार्य एक समयमें एक ही क्षपकको सुकुलकी दुर्लभता ३४४ सल्लेखनाका भार लेते हैं ३८६ नीरोगताकी दुर्लभता फिर क्षपकको शिक्षा देते हैं ३८७ साधु समागमकी दुर्लभता _आचार्यके छत्तीस गुण ३८८ श्रद्धान और संयमको दुर्लभता गुरुसे दोषोको निवेदन करके प्रायश्चित आचार्यके व्यवहारवत्व गुणका कथन ३५५ लेना आवश्यक कर्तव्य ६८९ पाँच प्रकारका व्यवहार , निरवशेष आलोचना ३९१ प्रायश्चित्त दानका क्रम ३५६ आलोचनाके दो प्रकार ३९२ प्रायश्चित्त शास्त्रको जाने बिना प्रायश्चित्त सामान्य आलोचनाका स्वरूप देनेसे दोष ३५८ विशेष आलोचना आचार्यके प्रकुर्वित्व गुणका कथन ३५९ शल्यके तीन भेद - आचार्यका आय अपाय विशित्व गुण ३६० भावशल्य दूर न करने में दोष ३९४ ,, के अवपीडकत्व गुणका कथन शल्यसहित मरणमें दोष ३९५ अवपीडक आचार्यका स्वरूप ३६८ शल्यको निकालने में गुण क्षपकको पीड़ित किये बिना दोषोंको आलोचनासे पूर्व कायोत्सर्ग ३९७ निकालना संभव नहीं ३६९ ऐसा करनेका कारण ३९८ आचार्यके अपरिश्रावी गुणका कथन ३७० अप्रशस्त स्थानोंमें आलोचना नहीं करनी सम्यग्दर्शनके अतीचार _ चाहिये ४०० अनशन आदि तपोंके अतिचार ३७१ आलोचना करनेके योग्य स्थान अभ्रावकाशके अतिचार ३७२ प्रायश्चित्तके अतिचार पूर्व दिशाकी ओर मुख क्यों ? ३७२ क्षपकके दोष दूसरोंसे कहनेवाले आचार्यके आलोचनाकी विधि दोष आलोचनाके गुण-दोष ३७३ आकम्पित दोष आचार्यको कषाय रहित होना चाहिये ३७६ दूसरा अनुमानित दोष ४०७ ऐसा आचार्य ही क्षपकका चित्त शान्त दृष्ट दोष ४०८ करता है ३७७ बादर दोष ४०९ : mr m ३७० ० ० ० ४०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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