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________________ ६० विषय सूक्ष्म दोष प्रच्छन्न दोष शब्दाकुलित दोष बहुजन दोष अव्यक्त दोष तत्सेवो दोष आलोचनाकी विधि लगे हुए दोषोका विवरण आलोचनाके पश्चात् गुरु तीन बार पूछते हैं तीनों वार एक ही रूपसे कहे तो सरल आलोचना उसीको प्रायश्चित दिया जाता है दोषके अनुसार प्रायश्चित सल्लेखनाके अयोग्य वसतिका योग्यवस तिका संस्तरका स्वरूप पृथ्वीमय संस्तर शिलामय संस्तर तृणमय संस्तर निर्यापकोंका कथन अड़तालीस निर्यापक निर्यापकों का कार्य निरन्तर हितकारी कथा कहते हैं चार प्रकारकी कथाएँ वक्षेपणी कथा नहीं करना चाहिये बड़तालीस यतियों के कार्यका विभाजन कमसे कम दो निर्यापक होते हैं एक निर्यापकमें दोष निर्यापकके द्वारा आहारका प्रकाशन पाकके भेद जीवनपर्यन्त के लिये आहारका त्याग सबसे क्षमायाचना निर्यापकगण रात दिन सेवा में तत्पर Jain Education International भगवती आराधना पृ० क्षपकके कान में शिक्षा 2. ४११ मिथ्यात्वको त्यागो सम्यक्त्वको भजो ४१२ जिनभक्तिका माहात्म्य ४१४ ४१५ ४१६ ४१७ ४१८ ४२५ ४२७ ४२९ ४३१ ज्ञानोपयोगकी महत्ता यममुनिका उदाहरण दृढ़सूर्प चोरका उदाहरण अहिंसाव्रतका पालन करो मनुष्य जन्मको दुर्भलता ४२६ अहिंसा व्रतकी महत्ता हिंसा ४३३ ४३४ 13 ४४० 37 ४३५ संरम्भ आदिका लक्षण अजीवाधिकरणके चार भेद ४३६ निक्षेपके चार भेद ४३७ ४३८ अहिंसाकी रक्षाके उपाय "" 11 अहिंसाव्रत में चण्डालका उदाहरण असत्य वचनके चार भेद गर्हित और सावद्यवचनका स्वरूप सत्यवचनका स्वरूप और गुण सत्यवचनका माहात्म्य असत्यवचन अहिंसादिका विनाशक विना दी हुई तृणमात्र वस्तु भी अग्राह्य ४५१ परद्रव्यहरणके दोष ४५४ माता भी चोरका विश्वास नहीं करती परलोकमें भी चोरकी दुर्गति ४५५ श्रीभूति पुरोहितका उदाहरण विषय नमस्कार मत्रको आराधना भावनमस्कार के विना रत्नत्रय भी व्यर्थ गवालेका उदाहरण ४४४ ४४६ " संसारके सब दुःख हिंसाके फल हिंसाका लक्षण हिंसा सम्न्धी क्रियाओंके भेद अधिकरणके भेद जीवाधिकरणके भेद " ४५८ ब्रह्मचर्य का स्वरूप For Private & Personal Use Only पृ० ४५९ ४६४ ४६८ ४७२ ४७३ ४७४ ४७४ ४७८ ४७९ ४८० ४८१ ४८५ ४८७ ४८८ ४८९ ४९१ ४९२ ४९३ ४९४ ४९५ ४९५ ४९६ ४९८ ४९९ ५०२ ५०३ ५०४ ५०५ ५०८ ५०९ ५१० ५१२ ५१२ ५१३ www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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