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________________ विजयोदया टीका 'जवि होज्ज तयाए ण थगिदं' यदि त्वचा न स्थगितं भवेत् । कीदृश्या ? 'मच्छिगापत्तसरिसियाए' मक्षिकादिति । तदा को नाम इच्छेज्ज कुणिमभरिदं सरीरं' को नाम वाञ्छेत् ? कि कुथितपूर्णं शरीरं । 'आल स्प्रष्टुं । अवयवाः ||१०३३।। hot कण्णधो जायदि अच्छी चिक्कणंसूणि । णासाधो सिंघाणयं च णासापुडेसु तहा || १०३४॥ 'कण्णे सु' कर्णयोः । ' कण्णगूधो' कर्णगूथः । 'जायदि' जायते । 'अच्छी सु' अक्ष्णोः । 'चिक्कणंसूणि' मलमश्रुबिन्दवश्च | 'णासागूघो' नासिकामलं । 'सिंघाणगं च' सिंघाणकं च 'णासापुडेसु' नासापुटयोः ॥ १०३४ ॥ खेलो पत्तो सिंभो वमिया जिन्भामलो य दंतमलो । लाला जायदि 'तुंडम्मिणिच्चं मुत्तपुरिससुक्कमुदरत्थ' ॥१०३५॥ स्पष्टार्थोत्तरगाथा - सेदो जायदि सिलेसो व चिक्कणो सव्वरोमकूवेसु । जायंति जू लिक्खा छप्पदियासो य सेदेण ॥ १०३६॥ 'सेदो जायदि' स्वेदो जायते । 'सिलेसो व चिक्कणो' चर्मकारश्लेष्मवच्चिक्कणः । 'सव्वलोमकूर्व सु' सर्वलोमकूपेषु । 'जायंति' जायन्ते । 'जूका' यूका: । 'लिक्खा' लिक्षाश्च । 'छप्पविगाओ य' चर्मयूकाश्च । 'सेवेण' स्वेदेन हेतुना । एतावता प्रबन्धेन शरीरावयवा व्याख्याताः ॥ १०३६॥ णिग्गमणं । निर्गमनव्याख्यानायाचष्टे— ५५१ arguणो भिण्णो व घडो कुणिमं समंतदो गलइ । पूदिंगालो किमिणोव वणो पूदिं च वादि सदा ||१०३७|| गा०-- यदि शरीर मक्खीके पंखके समान त्वचासे वेष्टित न हो तो मलसे भरे शरीरको कौन छूना पसन्द करेगा || १०३३ ॥ गा०—- कानोंसे कानका मल उत्पन्न होता है। आँखोंमें आँखका मल और आँसू रहते हैं। तथा नाक नाकका मल और सिंघाड़े रहते हैं ||१०३४ || -oll - मुखमें खखार, पित्त, कफ, वमन, जीभका मल, दन्तमल और लार उत्पन्न होते हैं। और उदरमें मूत्र, विष्टा तथा वीर्यं उत्पन्न होते हैं ||१०३५|| गा० - शरीर के सब रोमकूपोंसे चमारके सिरेसके समान चिपचिपा पसीना निकलता है । और पसीने के कारण लीख और जूं उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार शरीरके अवयवोंका कथन हुआ ||१०३६॥ अब मलके निकलनेका कथन करते हैं गा० - जैसे विष्टासे भरे और फूटे हुए घड़ेसे चारों ओरसे गन्दगी बहती है अथवा जैसे कृमियोंसे भरे घावसे दुर्गन्धयुक्त पीव बहती है वैसे ही शरीरसे निरन्तर मल बहता है || १०३७|| निर्गमनका कथन समाप्त हुआ । २. मिदरत्थं - ज० मृ० । इदरत्थे मेहन योनि १. म्मि मूत्त पुरिसं च सु-आ० मु० | गुदयोः - मूलारा० ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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