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________________ ५५० भगवती आराधना मुत्तं आढयमेत्तं उच्चारस्स य हवंति छप्पच्छा । वीसं णहाणि दंता बत्तीसं होंति पगदीए ॥१०२९॥ 'मुत्तं आढयमेत्तं' मूत्र आढकमात्र । 'उच्चारस्स य हवंति छप्पच्छा' षट्प्रस्थप्रमाण उच्चारः । 'वीसं णहाणि' विंशतिसंख्या नखानां । 'दंता बत्तीसं होंति' द्वात्रिंशद्भवन्ति दन्ताः । 'पगदीए' प्रकृत्या ॥१०२९।। किमिणो व वणो भरिदं सरीरं किमिकुलेहिं बहुगेहिं । सव्वं देहं अप्फदिदूण वादा ठिदा पंच ॥१०३०॥ "किमिणो व वणो' संजातक्रिमिव्रणवत् । 'बहुर्गेहि किमिकुलेहि भरिदं सरीरमिति' सम्बन्धः । बहुभिः क्रिमीणां कुलभरितं । 'सव्वं देहं अप्फंविदूण वाता ठिटा पंच' समस्तं शरीरं व्याप्य पञ्च वायवः स्थिताः ॥१०३०॥ एवं सब्वे देहम्मि अवयवा कुणिमपुग्गला चेव । एक्कं पि णत्थि अंगं पूयं सुचियं च जं होज्ज ॥१०३१॥ ‘एवं' उक्तेन प्रकारेण । 'देहम्मि सव्वे अवयवा' शरीराधाराः सर्वे अवयवाः । 'कुणिमपुग्गला चेव' अशुभपुद्गला एव । 'एक्कं पि णत्यि अंग' एकोऽपि नास्त्यवयवः । जं पूर्व सुचियं च होज्ज' योऽवयवः पूतः शुचिर्वा भवेत् ॥१०३१॥ परिदड्ढसव्वचम्मं पंडुरगत्तं मुयंतवणरसियं । सुट्ठ वि दइदं महिलं दट्ठपि णरो ण इच्छेज्ज ॥१०३२॥ 'परिदड्ढसव्वचम्म' परितो दग्धसर्वत्वक्पटलं । 'पंडुरगत्तं' पाण्डुरतर्नु । 'मयंतवणरसियं' विगलद्रसं 'सुठ्ठ वि दइदं महिलं' प्रियतमामपि वनितां । 'दडुपि गरो ण इच्छेज्ज' द्रष्टुमपि नरो न वाञ्छति ॥१०३२।। जदि होज्ज मच्छियापत्तसरसियाए णो 'थगिदं । को णाम कुणिमभरियं सरीरमालधुमिच्छेज्ज ॥१०३३।। गा०-मूत्र एक आठक प्रमाण है। विष्टा छह प्रस्थ प्रमाण है। स्वाभाविकरूपमें वीस नख और बत्तीस दाँत होते हैं ॥१०२९।। _____गा-जैसे घावमें कीड़े भरे रहते हैं वैसे ही शरीर वहुतसे कीडोंसे भरा है। समस्त शरोरको घेरे हुए पाँच वायु हैं ।।१०३०।। गा.-इस प्रकार शरीरके सब अवयव अशुभ पुद्गलरूप ही हैं। एक भी अवयव ऐसा नहीं है जो पवित्र और सुन्दर हो ॥१०३१॥ गा०—जिसकी सब चमड़ी जल जानेसे शरीर सफेद वर्णका हो गया है, और उससे पीव बहता है ऐसी नारी अतिप्रिय भी हो तो उसे मनुष्य देखना भी नहीं चाहता ।।१०३२।। १. पिहिदं-अ० आ० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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