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________________ विजयोदय टी सत्त तयाओ कालेज्जयाणि सत्तेव होंति देहम | देहम्मि रोमकोडीण होंति 'असीदि सदसहस्सा || १०२४ || 'सत्त तयाओ' सप्त त्वचः । 'कालेज्जगाणि सत्तेव होंति देहम्मि' सप्तैव कालेयकानि देहे । 'देहम्मि रोमकोडोण असोदि सदसहस्सा' शरीरे रोमकोटीनां अशीतिशतसहस्राणि ॥। १०२४ || पक्कामयासयत्था य अंतगुंजाओ सोलस हवंति । कुणिमस्स आसया सत्त हुंति देहे मणुस्सस्स || १०२५ ॥ 'पक्कामासयत्था' पक्वाशये आमाशये अवस्थिताः । 'अंतगुंजाओ' अन्त्रयष्टयः । 'सोलस हवंति' पोडशैव भवन्ति । 'कुणिमस्स आसया' कुथितस्य आश्रया सप्त भवन्ति देहे मनुजस्य ॥। १०२५ ।। थूणाओ तिणि देहमि होंति सत्चुत्तरं च मम्मसदं । णव होंति वणमुहाई णिच्चं कुणिमं सवंताई ॥। १०२६ ॥ 'थूणाओ तिष्णि देहम्मि होंति' स्थूणास्तिस्रो भवन्ति देहे । 'सत्तुत्तरं च मम्मसदं' मर्मणां शतं सप्ताधिकं । 'णव होति वणमुहाई' व्रणमुखानि नव भवन्ति । 'णिच्चं कुणिमं' नित्यं कुथितं स्रवन्ति यानि ॥ १०२६ ॥ देहम्मि मच्छुलिंगं अंजलि मित्तं सयप्पमाणेण । अंजलिमित्तो मेदो उज्जोवि य तत्तिओ चेव ॥ १०२७॥ 'देहम्मि' शरीरे । 'मच्छुलिंगं' मस्तिष्कं । 'अंजलि मित्तो सगप्पमाणेण' स्वाञ्जलिप्रमाणं परिच्छिन्नं । मेदोऽप्यञ्जलिप्रमाणं । 'ओजोवि तत्तिगो चेव' शुक्रमपि तावन्मात्रमेव ॥। १०२७॥ ५४९ तिणि य वसंजलीओं छच्चेव य अंजलीओ पित्तस्स । संभो पित्तसमाणो लोहिदमद्धाढगं होदि ॥। १०२८॥ 'तिष्णि य वसंजलीओ' तिस्रो वसाञ्जलयः । ' छच्चेव य अंजलीओ पित्तस्स' षड्ञ्जलयः पित्तस्य । 'सिभी पित्तसमाणी' श्लेष्मा पित्तप्रमाणः । 'लोहिदमद्धाढगं होदि' लोहितोऽप्यर्धाढकं भवति ॥ १०२८|| गा० - सात त्वचाएँ हैं । सात कालेयक मांसखण्ड हैं । और अस्सी लाख करोड़ रोम हैं ॥१०२४॥ गा० - पक्वाशय और आमाशयमें सोलह आते हैं । तथा मनुष्य के शरीर में सात मलस्थान हैं ||१०२५ || गा०—शरीरमें वात पित्त कफ ये तीन थूणाए हैं । एक सौ सात मर्मस्थान है । नौ व्रणमुख-मलद्वार हैं जिनसे सदा मल बहता रहता है ||१०२६ ॥ गा० - तथा अपनी एक अंजुलीप्रमाण मस्तिष्क है । एक अंजुलिप्रमाण मेद है और एक अंगुलिप्रमाण वीर्य हैं |१०२७॥ गाo - तीन अंजुलिप्रमाण बसा - चर्बी है। छह अंजु लिप्रमाण पित्त है । पित्त प्रमाण हो कफ़ है । रुधिर आधे आठक या बत्तीस पल प्रमाण है || १०२८॥ १. सीदि आ० मु० । २. सीदी आ० मु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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