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भगवती आराधनों कुणिमकुडी कुणिमेहिं य भरिदा कुणिमं च सवदि सव्वत्तो ।
'ताणं व अमेज्झमयं अमेज्झभरिदं सरीरमिणं ॥१०२०॥ 'कुणिमकुडी' कुथिता कुटी, . 'कुणिमेहि भरिदा' कथितैभरिता । 'कुणिमं च सवदि सव्वत्तो' कुथितं सर्वतः स्रवति समन्तात । २ताणं व अमेज्झमयं' तार्णमिव अमेध्यमयं । 'अमेज्झभरिदं' अमेध्यपूर्ण । 'सरीरमिमं' शरीरमिदं ॥१०२०॥ वृद्धिक्रमं निरूप्य शरीरावयवानाचष्टे
अट्ठीणि हुंति तिण्णि हु सदाणि भरिदाणि कुणिममज्जाए।
सव्वम्मि चेव देहे संधीणि हवंति तावदिया ॥१०२१।। 'अट्ठीणि हुति तिण्णि हु सवाणि' त्रिशतान्यस्थीनि । 'भरिदाणि कुणिममज्जाए' पूर्णानि कुथितेन मज्जासंज्ञितेन । 'सम्मि चेव देहम्मि' सर्वस्मिन्नेव शरीरे । 'संधीणि हवंति तावदिगा' सन्धिप्रमाणमपि त्रिशतमेव ॥१०२१॥
ण्हारूण णवसदाई सिरासदाणि हवंति सत्तेव ।
देहम्मि मंसपेसीण हुंति पंचेव य सदाणि ॥१०२२।। ‘ण्हारूण णवसदाइ' स्नायनां नवशतानि । 'सिरासदाणि य हवंति सत्तेव' सिराणां सप्तशतानि । 'देहम्मि मंसपेसीण हवंति पंचेव य सदानि' पंचशतानि शरीरे मांसपेश्यः ॥१०२२॥
चत्तारि सिराजालाणि हुंति सोलस य कंडराणि तहा ।
छच्चेव सिराकुच्चा देहे दो मंसरज्जू य ।।१०२३॥ 'चत्तारि सिराजालाणि' चत्वारि शिराजालानि शिरासंघाताः। 'सोलस य कंडराणि तहा' षोडश कण्डरसंज्ञितानि तथा । 'छच्चेव सिराकुच्चा' षडेव शिरामूलानि । 'देहे दो मंसरज्जू य' शरीरे मांसरज्जूद्वयं ॥१०२३॥
गा०-यह शरीर कुथित अर्थात् मलिन वस्तुओंकी कुटी है और मलिन वस्तुओंसे ही भरी है। सब तरफसे महामलिन मल ही उससे बहता रहता है। मलसे भरे पात्रके समान यह शरीर मलसे भरा होनेसे मलमय ही है ॥१०२०।।
शरीरकी वृद्धिका क्रम कहकर शरीरके अवयवोंको कहते हैं
गा०-इस शरीरमें तीन सौ हड्डियाँ हैं जो कुथित मज्जासे भरी हैं । तथा सम्पूर्ण शरीरमें तीन सौ ही सन्धियाँ हैं ।।१०२१॥
गा०–नौ सौ स्नायु हैं । सिराएँ सात सौ हैं । पाँच सौ मांस पेशिया हैं १०२२।।
गा०-चार शिराजाल हैं ! सोलह रक्तसे पूर्ण महाशिराएँ है। छह शिराओंके मूल हैं। दो मांस रज्जु है एक पीठ और एक पेटके आश्रित हैं ||१०२३।।
१, २, ३. भाणं आ० ।
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