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________________ ५२० भगवती आराधना आयरियउवज्झाए कुलगणसंघस्स होदि पडिणीओ । कामकणिला हु घत्थो धम्मियभावं पयहिदणं ।।८९७।। 'आयरियउवज्झावग' आचार्याणां अध्यापकानां, कुलस्य गुरुशिष्यवर्गस्य, गुरुधर्मभ्रातृशिष्याणां वा चातुर्वर्ण्यस्य वा संघस्य च भवति प्रतिकूलः कामकलिना ग्रस्तः धार्मिकत्वं विहाय ।।८९७।। कामग्धत्थो पुरिसो तिलोयसारं जहदि सुदलाभं । तेलोक्कपूइदं पि य माहप्पं जहदि विसयंधो । ८९८॥ 'कामग्घत्थो' कामग्रस्तः । त्रैलोक्यसर्वसारमपि श्रुतलाभं जहाति । त्रैलोक्येन पूजितमपि माहात्म्यं त्यजति विषयान्धः ।।८९८।। तह विसयामिसघत्थो तणं व तवचरणदंसणं जहइ । विसयामिसगिद्धस्स हु णत्थि अकायव्वयं किंचि ॥८९९।। 'तह विसयामिसघत्यो' विषयामिषलंपटः । तृणमिव तपश्चरणं दर्शनं च जहाति । विषयामिषलंपटस्य नास्त्यकार्य किञ्चित् ।।८९९॥ अरहंतसिद्ध आयरिय उवज्झाय साहु सव्ववग्गाणं । कुणदि अवण्णं णिच्चं कामुम्मत्तो विगयवेसो ॥९००॥ अरहंतसिद्धआपरिय' अर्हता, सिद्धानां, आचार्याणां, उपाध्यायानां, सर्वेषां यतीनां चावर्णवादं करोति नित्यं विकृतवेषः ॥९००। अयसमणत्थं दुःखं इहलोए दुग्गदा य परलोए । संसारं पि अणंतं ण मुणदि विसयामिसे गिद्धो ।।९०१।। करता है । तथा कामी हितकारी बात कहनेवालेको शत्रुके समान देखता है ।।८९६।। गा०-कामरूपी कलिकालसे ग्रस्त मनुष्य धार्मिक भावको त्याग आचार्य, उपाध्याय, कुल-गुरुका शिष्य समुदाय, गण-गुरुके धर्मबन्धुओंका शिष्य समुदाय और चतुर्विध संघका विरोधी बन जाता है ।।८९७|| गा०-कामसे ग्रस्त मनुष्य तीनों लोकोंके सारभूत श्रुतज्ञानके लाभको भी छोड़ देता है । वह विषयान्ध होकर तीनों लोकोंसे पूजित माहात्म्यको भी छोड़ देता है अर्थात् उसे शास्त्र स्वाध्यायमें रस नहीं रहता और कामके पीछे अपना महत्त्व भी भुला देता है ।।८९८।। गा०–तथा विषयरूपी मांसमें आसक्त होकर तप चारित्र और सम्यग्दर्शनको तिनकेकी तरह त्याग देता है । ठीक ही है विषयरूपी मांसके लोभीके लिए कुछ भी अकार्य नहीं है, वह सब कुछ अनर्थ कर सकता है ।।८९९।। गा०-कामसे उन्मत्त साधु साधुरूपको त्यागकर अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सब साधुजनोंका अवर्णवाद करता है, उनपर मिथ्या दोषारोपण करता है ॥९००॥ गा०—विषयरूपी मांसका लोभी मनुष्य अनर्थकारी अपयश, इस लोकके दुःख, परलोकमें दुर्गति और भविष्यमें संसारकी अनन्तताको नहीं जानता। अर्थात् वह इस बातको भुला देता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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